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त्रिरत्न
'सम्यग्दर्शनजान चारित्राणिमोक्षमार्गः ।' सम्यक् दर्शन-ज्ञान और चारित्र को मोक्षमार्ग कहा है । इस सूत्र से प्रायः हर जैन परिचित लगता हैं । अनेक वार हम उसका प्रयोग करते हैं । इस रत्नत्रयी मोक्षमार्ग को पूरे जैन दर्शन-आराधना की नींव की ईट मान सकते हैं । यही कारण है कि इन तीन तत्त्वों या बातों की चर्चा प्रायः हर युग के हर आचार्य ने अपने-अपने ढंग से की है । लाक पृष्ठ लिखे गये हैं । सूक्ष्मतम व्याख्यायें की गई हैं । हम अपनी चर्चा में उतने ही गहरे उतरेंगे जितने में हम उस पंथ को जान सकें...फिर मोक्ष मार्ग का साधक ज्ञान-साधनासे स्वयं गहराई को माप लेगा।
पिछले प्रकरणों में हमने वर्म एवं तत्वों की चर्चा की । अंत में हमारा मूल उद्देश्य तो कर्मों की निर्जरा करके मोक्ष या मुक्ति तत्त्व की प्राप्ति करना ही है । इसलिए दान-ज्ञान और चारित्र की समझ एवं धारणा आवश्यक है । आचार्यों ने इन त्रिरत्नों को भी 'सम्यक् ' विशेषता ले आबद्ध किया है । हमारा दर्शन ज्ञान और चरित्र पूर्ण समझदारी का समतौल एवं आत्म कल्याणकारी है। अन्यथा भटक जाने का डर हो सकता है । सम्यक् का अर्थ ही प्रसंशनीय है । जिसका अर्थ शब्दार्थ एवं तत्त्व के अर्थ के रुप में किया जाता है । सरल भाषा में जो पदार्थ जैसा है उसे बैमा जानना ही सम्यक्त्व का लक्षण है ।
सम्यग्दशन :- इस प्रकार वस्तु के स्वरूप को यथातत रूप देखना उसके स्पष्ट भेद को जानना एवं कर्तव्याकर्तव्य के विवेक
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