________________
१२४
मुझे लगता है कि इस मंत्र के जाप या स्मरण से तुरंत मोक्ष या लाभ मिले या न मिले पर तु शुद्ध मन एवं शुद्ध आचरण की प्रेरणा अवश्य मिलती है । विकल एवं द्विधायुक्त मन को स्थिरता प्राप्त होती है । सद्विचारों की दिशा मिलती है । मानवता के गुणों का विकास होता है । अन्तर की दुर्भावनाओं को सन्मार्ग पर मुड़ने की शक्ति मिलती है । इस प्रकार आज के आदमी को 'मन की शांति' का जो सच्चा सुख चाहिए वह अवश्य मिलता है। मन की शांति ही संयम की ओर ले जा सकती है । वहीं साधना में आरुढ़ करनेवाली शक्ति है ।
हमारे वर्तमान जीवन की सबसे बड़ी समस्या मानसिक अशांति एषणा और भौतिक सुखों के लिए भटकाव है । सारे दुखों की जड ही ये भावनाएँ हैं । यदि मन को शांति मिल जाये तो फिर समस्या या संघर्ष रहें ही कैसे ? इस मन को शांति इस मंत्र से अवश्य मिल सकती है । हम मंत्र को रटते हैं - मूर्ति के सामने घों खड़े रहकर सांसारिक सुखों को मांगते हैं । मूल में ही भूल करते हैं । यही कारण है कि हम दुःखी रहते हैं - शांति नहीं मिलती । मांगे तो मन की शांति - सांसारिक लाभ या लाभ नहीं !
यह मंगलमंत्र सर्व पापों का नाशक, मंगलकर्ता है । जो इसका श्रद्धा स्मरण करेगा वह अवश्य जिन पंथ का पथिक बन सकेगा ।
पूजा : महत्ता एवं विधि
इससे पूर्व हम देवदर्शन एवं नमस्कार मंत्र की महत्ता की विचार कर चुके हैं । इस मंत्राराधना से हमारे चित में स्थिरता, एकाग्रता हो जाती है । अब हम आराधना की प्रथम श्रेणी पूजा की ओर अग्रसर होते हैं । 'पूजा' का सामान्य अर्थ ही है-पूजा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org