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कि कृष्णलेश्या से युक्त दुष्ट पुरुष अपने ही गोत्रीय तथा एक मात्र स्वकलत्र को भी मारने की इच्छा करता है । दया धर्म से रहित, वैर को न छोड़ने वाला प्रचड कलह करने वाला और क्रोधी जीर कृष्णलेश्या के साथ धूमप्रभा पृथ्वी से अंतिम पृथ्वी तक जन्म लेता है। ऐसा व्यक्ति नरकगामी होता है ।
नील लेश्या-जिस प्रकार नीला रंग काले से कुछ कम काला होता है । इसी प्रकार नील लेश्यावाले कषाय या दुष्ट भाव कृष्णले या से कम होते हैं । ऐसे लोग ' अतिनिदयालु' प्रपंचनामें दक्ष, धन-धान्यादि के संग्रह का तीव्र लालमी होता है । (पंचसंग्रह) तिलायपरगति एव राजवार्तिक में भी इसी प्रकार के चरित्र का निरुपण है । इनके अनुसार ऐसा व्यक्ति विषयाशक्त, मतिहीन, मानी विवेकबुद्धि रहित मायावी, लाभांध एवं लालची होता है । यों कहना ठीक होगा कि कृष्णलेश्या के व्यक्ति के समान ही दुर्गुण वाला होता है, मात्र दुष्टता में आंशिक कमी होती है । उदाहरणार्थ यें। कहा जा सकता है कि यदि कृष्णलेश्या वाला व्यक्ति पूरा वृक्ष उनाड़ना चाहेगा तो यह उसकी डालियाँ काटने तक सीमित रहेगा पर वृक्ष का नाश करना दोनों की ही वृत्ति और प्रवृत्ति होगी ।
कपोत लेश्या :- वैसे तो प्रथम तीन अशुभ वृत्तियों में से यह तीसरी अशुभवृत्ति है । पर ऐसी लेश्यावाले व्यक्ति की दुष्टता या भयानता के परिमाण कम होते हैं । शास्त्रों में कहा है कि ऐसा आदमी दूसरों पर रोप करता है, परनिन्दक, दूषण-शोक भय बहुल एवं इर्षालू होता है । आत्मश्लाघी, अविश्वास होने के साथ घमंडी होता है। जो प्रसंशा का इच्छुक, चापलूसी में माननेवाला कर्तव्याकर्तव्य के भेद से अज्ञान होता है । अर्थात
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