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'मात्सर्य, पशुन्य, परपरिभत्र, आम प्रसंशा, पर विवाद, जीवननैराश्य, प्रसंशक को धनदान,युद्ध-मरणोद्यम आदि कपोत लेझ्या के लक्षण है। (राजवार्तिक) कपोतलेश्या वाला परवातक नहीं होता । यह वृक्ष का जड़ से उखाड़ने या डाली काटने के स्थान पर उसके पत्ते नेचिने तक ही कलुपित होता है ।
पीतलेश्या :- शुभलेश्यायों में प्रथम पीत लेश्या है । इसका रंग पीला माना गया है । इसे तेजोलेझ्या भी कहा गया है । ऐसा व्यक्ति कर्तव्याकर्तव्य के भेद का जाननेवाला एवं सेव्य असेव्य का निर्णय करनेवाला होता है । समदर्शी दया -दान में रत मृदुभापी एवं ज्ञानी होता है । पीतलेश्या के गुण ही दृढ़ता मित्रता, दयालुता, सत्यवादिता, दानशीलत्व, स्वकर्मपटुता एवं सर्वधर्म समदर्शी माने गये हैं । ऐसा व्यक्ति वृक्ष की अन्य हानि नहीं करता।
पालेश्या :- पद्म अर्थात कमल के रंगसा सफेद । धवल और कोमल रंग और गुणों वाला । जो व्यक्ति त्यागी, भद्र, सञ्चा, उत्तम कार्य करने व ला क्षमा दान देने वाला तथा साधु जनेां के गुणों की पूजा क ने वाला होता है उसके पद्म लेश्या होती है । जिसके उत्तम गुणों का विकास हो रहा है । समतुला एवं मृदुता जिसके गुण हैं | वह प्रसन्नचित्त होता है | आंखों में करुणा एवं बोली में ममता टपकती है । ऐसा व्यक्ति मात्र उसी फल को तोड़ता है जो उपयोग में लिया जाये । अन्य फलों का नुकशान नहीं करता।
शुक्ललेश्या :- इसका रंग पूर्णशुभ्र । अर्थात निधि होता है । यह उत्तमबृत्ति का परिचायक या संपूर्ण कषाय रहित व्यक्ति का परिचायक है । जो व्यक्ति निंदा पक्षपात से ऊपर उठकर समगृष्ठा हो जाता है । जो द्वेष एवं राग दोनों से उठ गया है.
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