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पक्ष्य" की चर्चा के अन्तर्गत इस व्रत का समावेश हो जाता है । संक्षिप्त में इतना ही कि हमारे भोजन अहार-विहार में सर्वत्र कम से कम वस्तुओ का उपयोग हो । साधनों के परिमाण को निरंतर घटाते रहें यही मूल उद्देश्य है ।
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इसमे (१) देशावगाशिक व्रत ।
(२) सामायिक वन । (३) पौषधोपवास त एवं (४) अतिथि विभाग द्वा!
देशावगाशिक शिक्षाबत :
देशावगाशिक व्रत परिमाण अत का ही एक स्वरूप है । दिगयत मे साधक यारज्जीवन दिशाओं में गमन करने की सीमा का नियम लेता है परतु उन सभाओं में भी उसे अमुक स्थान या दूरी तक जाने की आवश्यकता ही नही पड़ती ऐसे स्थान या सीमा जिगनाक जाने की आवश्यकता नही परती उन स्थानों तक भी जाने का नियम लेना या गमनागमन को परिमाणित कर देना इस अत के अन्तर्गत है । इस प्रकार सीमाओं का परिमाण घटाने के उद्देश्य में द्रव्य और भाव हिंसा से बचना है । सामायिक शिक्षाबत :
साभायिक शिक्षालत में सामायिक के गुणों का पालन अमि-- प्रत है। इसको चर्चा सामायिक के अन्तर्गत कर चुके हैं-अतः पुनरावर्तन की आवश्यकता नहीं सामायिक तो स्वयं पूर्ण योग है। इसका पूर्णरूप से शास्त्रीय ढंग से पालन या सावन करने वाला बोगी।
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