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यद्यपि हिलना चलना या ठहरना आदि का स्वतत्रकनी जीप : और पुदगल स्वय' है । स्वय' की क्रियाओं से ही वे चलते या ठहरते हैं परन्तु उनमें सहायभूत पदार्थ ये दोनों द्रव्य माने गये हैं। इस प्रकार गतिशीलता एवं स्थिरता में सहायभूत द्रव्यों का स्वीकार तो वतमान विज्ञान ने भी कर लिया है ।
ये दोनों द्रव्य आकाश की भांति अमूर्तिक ए समस्त लोकव्यापी हैं । ये दोनों द्रव्य प्रेरक कारण भी नहीं है । किसी को बलात न चलाते हैं और न ठगते ही हैं । ये तो मात्र सहायक द्रव्य ही हैं। घासीराम जे । ने अपने मशोबन प्रध- '' का मोलोजी(ओल्ड एन्ड न्यू' नामक पुस्तक में 'यूटन के आकग के निदान में क्रमशः धम-अधम द्रव्य को सष्ट एवं सिद्ध किया है।
आकाश :- आकाश पदार्थ सर्वज्ञात है । समस्त दिशाओं का भी इसी में समावेश होता है । आकाश द्रव्य सभी द्रव्यों को स्थान देता है । यह अमूर्तिक व सर्वव्यापी है । जैनाचायों में इस आकाश को (१) लोकाकाश (२) अलोकाकाश एसे दा विभागों में विभाजित किया है । लोक संबधी आकाश--लोकाकाश और अलोकसंबधी आकाश अलकाकास कहा है । सर्वव्यापी आकाश के मध्य में लोकाकाश है । अर्थात ऊपर नीच एवं आजू बाजू जहाँ तक धर्म अधम पदार्थ स्थित हैं वहाँ तक के क्षेत्र को लोक सज्ञ दी है । इससे बाहर आलोक स्थित है। धर्म-अधम द्रव्यों क सहयोग से ही जीव और पुद्गल की इस लोक में क्रियाये चल रही हैं । जबकि आलोक में इन दो पदार्था' का अभाव होने से कोई भी जीव या अणु नही है । अतः लोक में से अलोक में नहीं जा सकता । लोकमें छह-द्रव्य पाये जाते हैं जबकि अलोकाकाश में मात्र आकाश द्रव्य ही रहता है । यह आकाश द्रव्य अनत विस्तार
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