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बारह व्रत
महत्व है
।
बनता है ।
जैनधर्म में बारह व्रतों का पालन अर्थात सम्पूर्ण जैनधर्म को जीवन में वाहनत का धारी मनुष्य ही जैन कहलाने का अधिकारी उसका जीवन अन्तर और बाह्य एक सा सरल तरल होता है | मनुष्य को मनुष्यत्व के बाधक ये सिद्धांत व्यक्ति, व्यक्ति और समाज सभी को सम्पन्न बनाते हैं जैनधर्म में श्रावक और मुनि दोनों तपालन करते हैं । यद्यपि गृहस्थ श्रावक और गृहत्यागी मुनि के लिए उसके पालन का परिमाण अलग-अलग है । तथापि पंचपाप जैसे अनिष्टों से बचने की आवश्यकता दोनों के लिए अनिवार्य है । यों कहना अधिक सरल होगा कि जीवन में से बुराईयों को दूर करना और नई बुराईयों को न आने देने का प्रयास ही व्रत है | न ग्रहण किए जाते हैं - अर्थात उन नियमों का स्वीकार किया जाता है जिससे अन्य प्राणियों के प्रति क्रूर, उनके मन दुखाने वाला व्यवहार न हो। इन व्रतों को तीन मुख्य विभागों में विभा जिन किया गया है ।
१. महाव्रत ।
२. गुणव्रत 1
३. शिक्षान |
इन बारह मतों का उतारने की क्रिया ।
पांच महाव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षावत हैं ।
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महाव्रत के अन्तर्गत अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत. अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत, एव परिषद परिमाण व्रतों का समावेश होता है ।
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