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मर्यादा नहीं होती। पर विडंबना है कि काले धन से धनवाल कुबेर बने लोग आज समाज और देश के नेता बर्षे हैं । पुज रहे है । यह बात अला है कि लोग स्वार्थ यां भय वश उनके गुणगान गायें-पर मन से तो वे घृणा के पात्र ही रहते हैं।
चौर्यवृति का एकमात्र इलाज है संताप वृति का उदय कहाँ मी है "जब आवे संतोष धन, सब धन धूलि समान 12. ____जैनधर्म तो इससे मी आगे कहता है कि चोरी करना ही महीं, चोरी की प्रेरणा देना, चौर्यकर्म की शिक्षा देना; चोरी की घस्तु खरीदना, मूल्यवान वस्तु को कम भाव में झूठ बोलकर खरीदन ये सभी चोरी के ही कार्य हैं । पाप के कार्य हैं। जैन धर्म का अवलंबी, कपट, झूठ, हिंसा रहित होकर स्वउपार्जिन धन के उपयोग से ही संतुष्ट रहकर अचौर्यन्नत में आरुढ़ होता है। किसी भी पापार प्रतिष्ठान या देश का पतन उसके बेईमान एव' भ्रष्ट चेर कर्मचारियों के कारण ही होता है । देश की वर्तमान गरीवी के मूल में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजा बाद जब राजा ही चार ही तब कहें भी तो किससे ? चोरी को रोकने का मूलमंत्र हैआत्म संतोष, संयम और वृतियों में ऋजुता । हमें न वासनामय वृत्तियों पर संयम रखने के लिए ध्यान आदि का प्रयोग करना होगा। मैत्री का भाव विकसित करना होगा | अपने साथ दूसरे की भूखं मिटाने का प्रयास करना होगा । आवश्यकताओं को सीमित करना होगा । जो इस चौयक्ति की जनक है-उसे बांधना हेगा । हम गृहस्थ हैं । तो अणुन्नत अर्थात् गृहस्थ जीवन में अनावश्यकं चोरी पर संयम रखकर बचना होगा । ब्रह्मचर्याणुव्रत : - व्यक्ति का जब हिंसा सत्य और स्व-मेहनत से उपार्जित
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