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चार या बलात्कार ही है। विश्व के सभी समाज-फिरके भौतिकवादी पश्चिमी समाज ही क्यों न हो-वहां भी व्यभिचार और बलात्कार के प्रति नफरत ही है । व्यभिचारी व्यक्ति सर्वथा मनमस्तिक से कमजोर एव' डरपोक होता है। असत्य उसका शस्त्र और चोरी उसका साधन बन जाते हैं । वह निरंतर भयभीत रहता है। ऐसे नर-नारी का समाज में आज भी तिरस्कार किया जाता है । उस पर कोई विश्वास नहीं करता | ऐसा व्यक्ति भी सही अर्थों में मानसिक रोगी ही होता है क्योंकि उसका ध्यान निर तर भागों में ही भटकता है । वह अतृप्त रहता है। ___ काम को उत्तेजित करने में भड़कीले वस्र, सौन्दर्य प्रसाधन, गहने, चटपटे-चिकने भोग्य पदार्थ महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसा व्यक्ति निर'तर अग्ने सौदर्य के प्रदर्शन में लगा रहता है । वह मधुर भाषण से कलाद्वारा दूसरों को आकर्षित करता है । वासनाओं की पूर्ति करता है | यदि यह संभव न बने तो शक्ति
और धन द्वारा अपहरण और बलात्कार जसे कुकर्म करने में भी नही हिचकता |
युद्धों ने जहां हिंसा को बढ़ावा दिया वहीं बलात्कार को भी जन्म देकर उसे पल्लवित किया । इतिहास इसका साक्षी है । वर्तमान वेश्या बाजार व्यभिचार के परिणाम और कारणों के ही प्रतीक हैं । आज के सिनेमा नवयुवकों को व्यभिचार की ओर प्रेरित कर रहे हैं । व्यभिचारी शरीर से दुर्बल होता जाता है । ज्यों-ज्यों इस आग में घी पड़ता है त्यों-त्यों प्रज्वलित होती है । जब ईधन नहीं मिलता तब व्यक्ति के शरीर को ही खाने लाता है । परिणाम स्वरुप व्यक्ति क्षण आदि जैसे भयानक रोगों का शिकार बनकर जीवन नष्ट कर लेता है | शास्त्रों में तो कहा है कि अणुव्रत धारी. श्रावक को गर्भवती, रजस्वला, रोगिणी, कुंवारी कन्या या अतिवृद्धा
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