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लेनिन ने रशिया और माओने चीन में किया । लाखों लोग मौत की शरण पहुँचा दिए गये।
महावीर का समतावाद ही विनोबाजी का सर्वोदयवाद एव गांधीजी के ट्रस्टीशीप के विकास का ही आधुनिक रुप है ।
पाप का बाप ही लोभ है । उसका यिमन ही अपरिग्रहवाद है । लोभ व्यक्ति को संमह की प्रेरणा देता है एव' दान के लिए रोकता है। अरे ! लोभी तो स्वयंभी खा-पी नहीं सकता । वह धन के पीछे विवेकहीन होकर दौड़ता है । जिस दिन हम कम से कम वस्तुओं से अपना जीवन चलाना सीख लेगे तभी से हमारे अंदर लोभ मरने लगेगा । संतोष का सूर्य ऊगेगा और अपरिग्रह की शाँतिरुपी सभानता खिल उठेगी ।
वर्तमान विश्वशांति का एक मूल उपाय है-संग्रह वृत्ति का त्याग, बाँट कर खाने की भावना का विकास । इसी से प्रेम व मैत्री बढेगी।
ये पंच महाव्रत जिसमें दृढ होने लगते हैं वही मुक्तिपथ का पथिक बन जाता है । वहीं सम्यक्दृष्टि होता है। इन पांच महानतों को अधिक दृढ़ बनाने के लिए गुणन्नत और शिक्षाव्रतों का पालन या स्वीकार भी आवश्यक है । वैसे परस्पर पूरक हैं ।
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