Book Title: Jain Dharm Mimansa 01
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 14
________________ (८) विश्वास-सम्यग्दृष्टिका जीवन-आत्मतत्त्व-सम्यग्दर्शनकी असा म्प्रदायिकता सम्यग्दर्शनके चिह्न-प्रशमादि-अस्तिकनास्तिकका स्वरूप-निर्भयता-२५३ -इहलोकभय-परलोकभय-वेदनाभय-मरणभय-अत्राणभय -अश्लोकभय-आकस्मिकभय ।। दर्शनाचारके अङ्ग-निःशंकता-निःकांक्षता निर्विचिकित्सता- २७३ स्पृश्यास्पृश्यविचारकी निःसारता-चौकापंथकी विचित्रता-अमूढ़दृष्टित्वमूढ़ताओं और रूढ़ियोंका त्याग-लोकमूढ़ता-शास्त्रमूढ़ता-परीक्षाका महत्त्व और उसकी व्यावहारिकता-देवमूढ़ता-गुरुमूढ़तागुरुओंकी परीक्षाका महत्त्व-उपबृंहण या उपगूहन-स्थितिकरण -स्थितिकरणके छःकर्तव्य-वात्सल्य--वात्सल्यकी असाम्प्रदायिकता-प्रभावना-देव-शास्त्र-गुरुका श्रद्धान और सत्यक्त्व-तत्त्वार्थश्रद्धान और सम्यक्त्व—सम्यग्दर्शनकी व्यापकता ।

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