Book Title: Jain Dharm Mimansa 01
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha
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विषय-सूची
प्रथम अध्याय
धर्मका स्वरूप – विविधताका रहस्य - ईश्वर कर्तृत्वाकर्तृत्व- समन्वय - हिंसा-अहिंसा, गांवध, वर्णाश्रम व्यवस्था - द्वैताद्वैत - समन्वय और वैनयिक मिथ्यात्व – धर्मशास्त्र से दर्शनादिशास्त्रोंका पृथकत्व - विविताके रहस्य के सूत्र ।
धर्मका उद्देश्य - इस जीवनका हित
त्रिविध दुःख - धर्मसे दुःख - नाश - संयम - इन्द्रियसंयम-प्राणिसंयमकानून और धर्म |
पृष्ठ
१
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परसुखमें निजसुख - सुखदुःखका हिसाब - कीटपतङ्गोंका विचार - २३ जीवन्मुक्त और कर्तव्य । जगत्कल्याणकी कसौटी
अन्तर्नादकी आलोचना — मिल, बेन्थमका मत-लोकमान्य तिलकका आक्षेप- - उसका उत्तर- अधिकतम सुखवाली नीतिका संशोधन । सुखी बननेकी कला -- कर्मयोग या निर्लिप्तता-कायरताका उत्तरनिवृत्ति और गृहत्यागकी मीमांसा - अनावश्यक कष्टोंकी मीमांसा । धर्म-मीमांसाका उपाय — सर्वधर्मसमभाव — कसौटीका उपयोग - ४३. सम्प्रदायोंसे सारग्रहण - रूढ़ि और शास्त्र - सर्वजाति - समभाव - नरनारीसमभाव ।
धर्ममांसा और जैनधर्म – दोनोंका अविरोध
२९
३५
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दूसरा अध्याय
जैनधर्मकी स्थापना - प्राचीनताका मोह - नवीनताके गुण - चौबीसकी ५२. संख्या - तीर्थकर और धर्म- जैनधर्मसंस्थापक महावीर - पार्श्वधर्म जुदाधर्म - केशीगौतम संवाद-संवादपर विचार - सामायिक छेदोपस्थापना

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