Book Title: Jain Dharm Mimansa 01
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha
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(७)
संवादकी उपयोगिता-जैन नामोंके उल्लेखकी.निःसारता-ऋषभदेवका उल्लेख-ऋषभदेव और भागवत-खंडगिरिका शिलालेख-मोहनजो दडोके चिह्न और जैनधर्म-अरिष्टनेमि-अनन्तजिन । महात्मा महावीर-देवागम आदिकी निःसारता देवशब्दका अर्थ-वास्तविक महत्त्व-महावीर और कृष्णगर्भाहरणकी कल्पना-बाल्यजीवन-दीक्षाबारहवर्षका तप-तापसाश्रममें महावीर,—चौमासेमें
प्रस्थान-नियमनिर्माण-यक्ष-अच्छंदक-चण्डकौशक सर्प-मष्करी गोशालका साथ-विविध उत्सर्ग-सहन कैवल्य और धर्मप्रचार-गणधरोंका परिचय-विधवाविवाह-दवा- १३३
गमन-कल्पनाकी निःसारता-प्रश्नोंका महत्त्व चतुर्विध संघ-महावीरकी सतर्कता त्रिपदी
१४८ अतिशयादि-दिगम्बर-श्वेताम्बरोंका मतभेद सहजातिशय—अतिशयोंका सम्भवरूप
१५० कर्मक्षयजातिशय-अतिशयोंका सम्भवरूप देवकृत अतिशय-अर्धमागधीका अर्थ-अतिशयोंका सम्भवरूप आठ प्रतिहार्य
१७६ मूलातिशय-सब अतिशयोंका निष्कर्ष महावीर-निर्वाणदिगम्बर-श्वेताम्बर-आचार्यपरम्परा-शास्त्रभेद
१८३ मतभेद और उपसम्प्रदाय—निह्नव-जमालि-तिष्यगुप्त-अव्यक्तदृष्टि- १९२
अश्वमित्र-रोहगुप्त-गोष्ठामाहिल-द्राविडसंघ-यापनीयसंघ-काष्ठा और माथुरसंघ-मूर्तिपूजक अमूर्तिपूजक-तेरहपंथ-बीसपंथ
तीसरा अध्याय कल्याणपथ अर्थात् मोक्षमार्गसम्यग्दर्शनका स्वरूप-सत्यासत्यादि चार भेद-श्रद्धा और अन्ध- २१२
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