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धर्म तुम हो
तुम्हें मैं नगर ले चलूं। अब तुम पहली दफे देखोगे कि आदमी कैसा है। तो वह तीनों शिष्यों को लेकर नगर में आया। उनमें से एक शिष्य आस्पेंस्की ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि हमने पहली दफे देखा कि आदमी कैसा है! उसके पहले तो हमने देखा ही नहीं था। रहते आदमी में थे!
तिफलिस नगर में आकर पहली दफे देखा कि लाशें चल रही हैं। कोई जिंदा नहीं मालूम होता। कोई होश में नहीं है। मुर्दे बातें कर रहे हैं। सोए-सोए लोग चले जा रहे हैं रास्तों पर, भागे चले जा रहे हैं। लोग बात भी कर रहे हैं, लेकिन एक-दूसरे को सुन ही नहीं रहे हैं। कोई कुछ कह रहा है, कोई कुछ जवाब दे रहा है। कोई जमीन की कह रहा है, कोई आकाश की मार रहा है। तीन महीने का सन्नाटा ऐसी स्वच्छता दे गया, दर्पण ऐसा साफ हो गया कि दूसरों के हृदय के बिंब बनने लगे, दूसरों के चित्त के बिंब उतरने लगे।
आस्पेंस्की ने अपने गुरु को कहा, वापस चलें, बहुत घबड़ाहट होती है, यह तो मुर्दो का गांव है, कहां ले आए? यह वही गांव, जहां वर्षों रहे। लेकिन कभी इन आदमियों को देखा नहीं, क्योंकि हम भी वैसे ही थे, तो कैसे देखते! अंधों के बीच अंधे थे, तो अंधों का पता कैसे चलता। अंधों के बीच अगर तुम एक बार आंखें तुम्हारी ठीक हो जाएं और लौटो, तब तुम देखोगे कि सब टटोल रहे हैं! सब भटक रहे हैं। कोई गड़े में गिर गया है, कोई नाली में गिर गया है, कोई कुएं में गिर गया है, सब गिरे हुए हैं। अजीब हालत चल रही है, किसी के पास आंखें नहीं हैं और सबको भरोसा है कि सब जो कर रहे हैं, ठीक कर रहे हैं। ऐसा ही भरोसा तुम्हें भी था।
तुम अगर इस अदालत में गए होते तो तुम्हें ऐसा कुछ भी न दिखायी पड़ता। लेकिन उन भिक्षुओं को दिखायी पड़ा।
कोई धन के दबाव में था, कोई पद के दबाव में था, कोई जाति-वंश के दबाव में था।
कोई किसी. कोई किसी. लेकिन वहां न्याय की स्थिति में कोई भी नहीं था। न्याय तो वही कर सकता है जिसके भीतर का तराजू समतुल हो गया हो। अपना ही तराजू समतुल न हो तो न्याय कैसे होगा! जो भीतर सम्यकत्व को उपलब्ध हो गया हो, वही तो न्याय कर सकता है। जिसके भीतर ही अभी समता नहीं...समझो कि तुम ब्राह्मण हो और ब्राह्मण पर मुकदमा चल रहा है, तो अनजाने ही तुम कम सजा दोगे। अनजाने ही! नहीं कि तुम जानकर कम सजा दोगे, यह भी नहीं कहा जा रहा है। तुम्हें पता ही न चलेगा, यह अचेतन हो जाएगा। तुम अगर हिंदू हो और हिंदू पर मुकदमा चल रहा है, तो तुम थोड़ी कम सजा दोगे। वही जुर्म अगर मुसलमान ने किया हो तो थोड़ी ज्यादा सजा हो जाएगी। ____ अब कुछ बहुत नाप-तौल के उपाय तो नहीं हैं, उसी जुर्म के लिए साल की सजा दी जा सकती है, उसी जुर्म के लिए डेढ़ साल की सजा दी जा सकती है। उसी