Book Title: Dhammapada 09
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 302
________________ सत्य अनुभव है अंतश्चक्षु का के समय बहुत हाथ-पैर कंपने लगते हैं—यह तो मौत आ गयी। सुख तो कुछ मिला नहीं, यह सुख तो गया; यह संसार गया और दूसरे संसार का अब कुछ भरोसा नहीं आता। क्योंकि उस भरोसे के लिए भी जो बल चाहिए वह भी मौत तोड़ने लगती है। जवान आदमी को भरोसा होता है। एक युवक मेरे पास लाया गया। दिल्ली की बात है। जिनके घर मैं मेहमान था, उनको उस युवक के प्रति बड़ा लगाव था। उस युवक ने कहा कि मैं ब्रह्मचर्य की साधना कर रहा हूं। बस किसी तरह दस साल और गुजर जाएं-तब उसकी उम्र पैंतीस साल थी—दस साल और गुजर जाएं तो फिर मैं छुटकारा पा जाऊंगा। बस एक दफा पैंतालीस साल के पार हो जाऊं! तो मैंने उससे कहा, सुन, पैंतालीस साल के बाद ही असली झंझट आनी शुरू होती है। जो तुम्हारे तथाकथित ब्रह्मचारी हैं, अगर पतित होते हैं, तो पैंतालीस साल के बाद पतित होते हैं। वह कहने लगा, यह कैसी बात! क्योंकि मेरे गुरु ने तो यह कहा कि अभी जवानी है तो जोश है वासना का, बस एक दफा जवानी का जोश चला जाए-कुछ दिन और गुजार ले, एक दफा जवानी का जोश चला गया तो फिर वासना में बल नहीं रह जाएगा। मैंने कहा, वह तो मैं समझा, लेकिन इस कामवासना को दबाने में भी जवानी ही हाथ बंटा रही है, जवानी की ही ताकेत काम आ रही है। जब जवानी की ताकत खो जाएगी तो दबाने वाला भी कमजोर हो जाएगा; पैंतालीस साल के बाद तुझे पता चलेगा। जब दबाने वाला भी कमजोर हो जाएगा, तब जन्मभर की दबाई हुई वासनाएं पूरी तरह से विस्फोट लेंगी। उसने मेरी बात नहीं सुनी। दस साल बाद मेरे पास आया और उसने कहा, आप ठीक कहते थे, आपने तो बिलकुल तारीख, पैंतालीस साल क्या मेरा भाग्य का निर्णय कर दिया। यही हो रहा है। अब मैं कमजोर हो गया हूं और अब कमजोर होने में ऐसा लगता है कि अब थोड़े दिन और बचे हैं, कहीं ऐसा न हो कि यही संसार सब कुछ है, और मैं यहां भी चूका और वहां का कुछ पता नहीं कि है भी या नहीं! दूसरे संसार का तुम्हें पता कहां है! तो न रहे घर के न घाट के, अब वासना बड़ी प्रबल हो गयी है और उसने कहा कि अब मैं नहीं दबा पाता। तब मैं दबा पाता था, आप ठीक कहते थे, मेरे में बल था, ऊर्जा थी। जिस ऊर्जा से तुम वासना को दबाते थे, वह वासना की ही ऊर्जा है, उसी को तुमने वासना के ऊपर चढ़ा दिया है। अब वासना भी शिथिल होने लगी भीतर, तो ऊर्जा भी शिथिल होने लगी। और जब ऊर्जा शिथिल होने लगी तो जिस वासना को तुमने बीस-पच्चीस या तीस वर्ष तक दबा रखा है, वह बदला लेगी, जैसे दबाया हुआ स्प्रिंग खुल जाए, उठ जाए। दबी बातें बलशाली हो जाती हैं। तो ईश्वर भाई की मां के साथ वही हुआ है-पचास वर्षों की जैन-साधना! अब मौत द्वार पर खड़ी है, अब मोक्ष दिखायी नहीं पड़ता। अब वह सपने देखने की 289

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