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एस धम्मो सनंतनो
निश्चित, वहां सब खड़े हैं। मित्र, प्रियजन, पत्नी, बच्चे, जिनको वह गांव के बाहर छोड़ आया, जो गांव के बाहर तक उसे छोड़ने आए थे, वे सब खड़े हैं। पंक्तिबद्ध । शरीर से तो आ गया है, मन से अभी वहीं अटका है। गुरु ने ठीक कहा, बिलकुल ठीक कहा कि यह भीड़-भाड़ छोड़कर आ । यह भीड़-भाड़ न चलेगी यहां। अकेला होकर आ ।
संन्यास का अर्थ ही यह होता है, अकेले होने में जिसे मजा आ गया। भीड़ से जो थक चुका है, व्यर्थ से जो ऊब चुका है, संसार से जो भर चुका है। देख लिया सब, सब तरफ से देख लिया, उलट-पलटकर देख लिया, कुछ नहीं पाया, खाली है । ऐसा रिक्त संसार को देखकर जो आ गया, फिर वह ऐसी बातें करेगा ? ऐसी बातें तो फिर संभव न रह जाएंगी। ये बातें तो बड़ी सूचक हैं।
तो बुद्ध कहते हैं, इन्हीं मार्गों पर चलते-चलते जन्म-जन्म बीत गए, अभी तक थके नहीं? और भी भटकना है ?
क्योंकि जो सोचोगे, तो फिर भटकोगे। पहले तो विचार पैदा होता है, फिर कृत्य बन जाता है। खयाल रखना, कोई भी कृत्य अचानक पैदा नहीं होता। पहले तो विचार का बीज पड़ता है। फिर विचार का बीज धीरे-धीरे मजबूत होकर जड़ें जमाता है, फिर अंकुरण होता है, फिर कृत्य बन जाता है। अभी सोच रहे हो धन के संबंध में, फिर आज नहीं कल धन के पीछे दौड़ने लगोगे । अभी सोच रहे हो सुंदर स्त्री-पुरुष के संबंध में, लेकिन कब तक रुकोगे ? यह विचार अगर गहन होता गया, तो कृत्य में परिणित होगा ही ।
इसलिए अगर कृत्य से बचना हो तो विचार से बचना होता है। सभी विचार अंततः कृत्य में रूपांतरित हो जाते हैं । और कृत्य को बदलना बहुत कठिन है, विचार को छोड़ देना बहुत सरल है, क्योंकि विचार छोटा है।
ऐसा समझो कि एक बीज, वटवृक्ष का बीज कितना छोटा सा होता है। अगर वटवृक्ष का बीज तुम्हारे आंगन में पड़ा हो तो इसको फेंक देने में क्या अड़चन है ! जरा बुहारी मार दी, बाहर हो जाएगा। लेकिन वटवृक्ष पैदा हो जाए, फिर बुहारी मारने से कुछ भी न होगा। फिर तो बड़ा आयोजन करना होगा, तब कहीं यह वटवृक्ष निकलेगा । क्रेन लानी पड़ेगी, या लकड़हारे लाने पड़ेंगे, इसे काटना पड़ेगा, तब कहीं यह दूर होगा। और ये जो भीतर कृत्य के वृक्ष बड़े हो जाते हैं, इनकी जड़ें तुम्हारे प्राणों में फैल जाती हैं। ये तुम्हारे चित्त को सब तरह से आच्छादित कर लेते हैं। इनको उखाड़ना अपने को तोड़ने जैसा होता है - बड़ा पीड़ादायी है।
इसलिए बुद्ध कहते हैं, क्या अभी और भटकने का मन है ? ये विचार तो सांकेतिक हैं, ये तो खबर दे रहे हैं कि अभी भटकने की और इच्छा बनी है। ऐसा लगता है, भिक्षुओ, तुम कच्चे ही संन्यस्त हो गए, तुम पके नहीं थे। तुम्हारा मन अभी वहीं अटका है। ऐसा लगता है, तुम किसी लोभ में आ गए। तुमने मेरी बात
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