________________
एस धम्मो सनंतनो
ने, किस हत्यारे ने आपके साथ यह दुर्व्यवहार किया है? इस पर वे आपस में कुछ बड़बड़ाए और एक वृद्ध ने आगे बढ़कर कहा, यह हमारा अपना कार्य है; यह हमारी साधना है, यह हमारे शास्त्र का आदेश है। हमने अपने अवगुणों पर विजय पायी है। यह कहकर वह मुझे एक चबूतरे पर ले गया। ___ वहां एक शिलालेख था जिसमें लिखा था-यदि तुम्हारी दाहिनी आंख तुम्हें ठोकर खिलाए तो उसे बाहर निकालकर फेंक दो। क्योंकि सारे शरीर को नर्क में पड़ने की अपेक्षा एक अंग का नष्ट हो जाना बेहतर है। और यदि तुम्हारा दाहिना हाथ तुम्हें बुराई पर उकसाए तो उसे काटकर फेंक दो, ताकि तुम्हारा केवल एक अंग नष्ट हो
और पूरा शरीर नर्क में न पड़े। और यदि तुम्हारी वाणी अशुभ बोले तो जीभ को काट दो, ताकि जीभ ही दुख पाए और तुम दुख न पाओ।
यह लेख पढ़कर सब वृत्तांत मुझ पर खुल गया। मैंने पूछा; क्या तुममें कोई भी ऐसा नहीं है जिसके दो हाथ और दो आंखें हों? जिसकी जबान साबित हो? जिसके पैर कटे न हों?
उन सबने उत्तर दिया-नहीं, कोई नहीं, सिवाय उन छोटे बच्चों के अतिरिक्त जो अल्पायु होने के कारण शिलालेख को पढ़ने में अभी असमर्थ हैं। ___ जब हम मंदिर के बाहर आए तो मैं तुरंत उस पवित्र नगरी से निकल भागा, क्योंकि मैं अल्पायु न था और इस शिलालेख को भलीभांति पढ़ सकता था। ___ खलील जिब्रान की यह कहानी अर्थपूर्ण है। तुम्हारे शास्त्रों ने तुम्हें सिर्फ अपंग किया है। तुम्हारी जबानें काट डाली हैं। चाहे भौतिक जबानें न भी काटी हों, लेकिन तुम्हें बोलने में नपुंसक कर दिया है। तुम सत्य कहने में असमर्थ हो गए हो। तुम्हें पता भी चलता है कि यह सत्य है तो भी तुम नहीं कह पाते, क्योंकि शास्त्र विपरीत पड़ते हैं। तुम्हारी आंखों को धुंधला कर दिया है, चश्मे चढ़ा दिए हैं, धूल चढ़ा दी है। तुम वही नहीं देखते, जो है। तुम वही देखते हो जो तुम्हारे शास्त्र कहते हैं। तुमने अपनी चेतना खो दी है। तुम अंधों की भांति शास्त्र की लकड़ी को पकड़कर चल रहे हो। और शास्त्र खुद मुर्दा हैं, इसलिए तुम्हें चला तो नहीं सकते। शास्त्र दूसरे मुर्दो के हाथ में हैं, जिनको तुम पंडित कहते हो। ऐसे मुर्दे मुर्दो को ढकेल रहे हैं और अंधे अंधों को चला रहे हैं
लाभ की तुम पूछते हो। तुम पर निर्भर है। लाभ से तुम्हारा क्या मतलब? अंधा होना है? तो शास्त्र बड़े उपयोगी हैं, उनसे बड़ा लाभ होता है। अपंग होना है? तो जरूर उपयोगी हैं। लेकिन अगर स्वस्थ होना हो, तो शास्त्र से सहायता नहीं मिलती।
क्या मैं यह कह रहा हूं कि शास्त्र का कोई भी उपयोग नहीं है? नहीं, शास्त्र का एक उपयोग है; लेकिन वह तो स्वयं सत्य को जान लेने के बाद है। तुमसे मैं एक अजीब सी बात कहना चाहता हूं-शास्त्र पढ़ना जरूर, जब तुम थोड़े ध्यान को उपलब्ध हो जाओ, तब पढ़ना। फिर शास्त्र तुम्हें नुकसान न पहुंचाएंगे। फिर शास्त्र
172