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एस धम्मो सनंतनो
जरा सोचो, एक ऐसा समय जब मृत्यु न होती हो। फिर कौन प्रार्थना करेगा ? कौन ध्यान करेगा ? किसलिए करेगा ? मृत्यु अपूर्व है । मृत्यु अमंगल नहीं है, खयाल रखना, मृत्यु में मंगल छिपा है । अगर तुम मृत्यु को ठीक से समझ लो तो उसी से तुम्हारे जीवन में आमूल क्रांति हो जाएगी। मृत्यु दुश्मन नहीं है। जीवन भला दुश्मन हो, मृत्यु तो मित्र है, क्योंकि मृत्यु जगाती है, जीवन सुला देता है। जीवन में तो तुम सोए-सोए चलते रहते हो, मौत आती है, झकझोर देती है, झंझावात की तरह आती है। । सब धूल झड़ जाती है— विचार की, वासना की — तुम चौंककर खड़े हो जाते हो, पुनर्विचार करना होता है, फिर से सोचना पड़ता है, फिर से जीवन के आधार रखने होते हैं; किसी दूसरे जीवन के आधार रखने होते हैं, जिसे मौत न मिटा सके। उस जीवन का ही नाम तो मोक्ष है, जिसे मौत न मिटा सके।
संसार और निर्वाण का इतना ही अर्थ है । संसार ऐसा जीवन जिसे मौत छीन लेती है, और निर्वाण ऐसा जीवन जिसे मौत नहीं छीन पाती है। संसार ऐसा जीवन जो आज नहीं कल हाथ से जाएगा ही । उसको बनाने में जितना समय लगाया, व्यर्थ गया। उसको बनाने में जितनी रातें और दिन खोए, व्यर्थ गए। एक ऐसा भी जीवन है जहां मृत्यु असमर्थ है, जहां मृत्यु का कोई प्रवेश नहीं है, वही निर्वाण का जीवन । मृत्यु द्वार पर खड़ी हो तो अब युवक करता भी क्या ! गया बुद्ध के चरणों में। अब तक तो पास रहकर भी हजारों योजन दूर था ।
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वहीं ठहरा था, एक ही नदी तट पर दोनों ठहरे थे, लेकिन हम पास-पास भी होकर अपनी-अपनी दुनिया में अलग-अलग होते हैं। इससे कुछ बहुत फर्क नहीं पड़ता कि तुम मेरे पास बैठे हो। हमारे शरीर एक-दूसरे से सटे हों तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता । निकटता, मात्र शारीरिक निकटता निकटता नहीं है। तुम हजारों कोस दूर हो सकते हो। तुम्हारी अपनी दुनिया हो सकती है, मेरी अपनी दुनिया । हम अपनी-अपनी दुनिया में रहते हैं। यहां जितने लोग हैं उतनी दुनियाएं हैं। और प्रत्येक व्यक्ति अपनी दुनिया से घिरा है। और अपनी दुनिया ही इतनी बड़ी है कि दूसरे की दुनिया देखने का अवसर कहां है !
अब तक तो बुद्ध के पास ही ठहरकर हजारों योजन दूर था। सुबह कभी सुनने न आया, सांझ कभी सुनने न आया, पास कभी आकर न बैठा, कुतूहल से भी न बैठा, जिज्ञासा तो छोड़ो, मुमुक्षा की तो बात ही मत करो, लेकिन कुतूहल तो हो सकता था कि क्या यहां हो रहा है! लेकिन जिसका मन उलझा हो वासना में, वह एक क्षण भी व्यर्थ नहीं खोना चाहता- -वासना पूरी कर लो, उतनी देर में तो थोड़ा धन और निर्मित होगा, थोड़ा सामान और बिकेगा, थोड़ी तिजोड़ी और भरेगी, उतना समय व्यर्थ मत करो।
जिनके मन में वासना प्रगाढ़ है, वे किसी को ध्यान करते देखकर कहते हैं, क्या पागलपन की बात कर रहे हो ? क्यों समय गंवा रहे हो ? समय धन है। समय से
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