Book Title: Dhammapada 09
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 292
________________ सत्य अनुभव है अंतश्चक्षु का होने लगी, क्योंकि बुद्ध हैं कि उस कमल के फूल को देखे चले जाते हैं और बोलते कुछ भी नहीं । आधी घड़ी बीती, घड़ी बीती, फिर तो लोग घबड़ाने लगे कि यह क्या हो रहा है, ऐसा कभी न हुआ था। और तब एक शिष्य महाकाश्यप हंसने लगा, खिलखिलाकर हंसने लगा — उसे कभी किसी ने हंसते भी न देखा था, वह तब तक जाहिर भी नहीं था, तब तक किसी को उसका पता भी नहीं था — उसकी हंसी की आवाज उस सन्नाटे में गूंजी, बुद्ध ने आंखें उठायीं, महाकाश्यप को अपने पास बुलाया, फूल उसे दे दिया और समूह से कहा, जो मैं कहकर कह सकता था, तुमसे कह दिया; और जो कहकर नहीं कहा जा सकता, वह मैं महाकाश्यप को देता हूं। वह सत्य का दान था। फिर सदियां बीत गयी हैं, पच्चीस सौ साल बीत गये, बौद्ध चिंतक, मनीषी इस पर विचार करते रहे हैं, ध्यान करते रहे हैं, कि क्या दिया बुद्ध ने महाकाश्यप को ? क्या मिला महाकाश्यप को ? क्यों महाकाश्यप हंसा ? तब तक नहीं हंसा था, उसके पहले तक उसके बाबत कोई उल्लेख बौद्ध ग्रंथों में नहीं है, फिर उसके बाद भी कोई उल्लेख नहीं है। महाकाश्यप हंसा लोगों की चित्तदशा देखकर कि लोग शब्द में प्रतीक्षा कर रहे हैं और आज बुद्ध मौन में दिये दे रहे हैं। जिस लिंग शू की मैंने तुमसे कहानी कही, वह मरणशय्या पर पड़ा था । शिष्य इकट्ठे हो गये थे। हजारों बार उन्होंने कोशिश की थी जान लें कि सत्य क्या है, धर्म क्या है, बुद्धत्व क्या है, निर्वाण क्या है, और लिंग शू हमेशा मुस्कुराकर चुप रह जाता था । सोचा कि शायद मरते समय कुछ कह दे, जाते-जाते शायद कोई कुंजी दे दे। तो शिष्यों ने पूछा कि हम एक ही प्रश्न पूछने आए हैं, विदा के पहले उत्तर दे जाएं। पूछा लिंग शू ने, क्या है प्रश्न ? वही तो अटकी थी मन में बात शिष्यों के, सभी ने कहा, एक ही, हम सबका एक ही प्रश्न है, अलग-अलग भी प्रश्न नहीं — सत्य क्या है ? लिंग शू ने आंखें बंद कर लीं, सन्नाटा रहा। यही तो सदा का मामला था। मरते वक्त भी अपनी आदत से लिंग शू बाज न `आया। यही उसकी जिंदगीभर की व्यवस्था थी। पूछो सत्य कि चुप हो जाता। और कुछ भी पूछो तो खूब बोलता, लेकिन जैसे ही तुम सत्य की बात के करीब आते कि जैसे उसकी जबान को लकवा लग जाता । चुप ही चल दिया लिंग शू, आंख बंद रही सो बंद ही रही, फिर न खुली। उसके निर्वाण के बाद उसके शिष्यों ने उसका एक स्मारक बनाना चाहा। उस पर वे उसका जीवन लिखना चाहते थे। लेकिन क्या लिखें ! उसका जीवन मौन की एक लंबी कथा थी । नहीं कि उसने कुछ न कहा था, रोज बोलता था, लेकिन जो लोग पूछते थे, वह नहीं बोलता था, कुछ और बोलता था। लोग पूछते हैं, स्वास्थ्य क्या है ? और लिंग शू बोलता था, औषधि क्या है बीमारी को दूर करने की । लिंग शू की पकड़ बड़ी वैज्ञानिक थी। तुम बीमार हो, औषधि की पूछो, स्वास्थ्य 279

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