Book Title: Dhammapada 09
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 297
________________ एस धम्मो सनंतनो दूसरा प्रश्नः मेरे प्यारे प्रभ, मेरी बढ़ी मां पिछले पचास वर्षों से जैन-साधना नियमित रूप से करती हैं, पर मृत्युशय्या पर उसकी जीवेषणा देखकर आज कुंडलिनी ध्यान में आपसे एक ही प्रार्थना रही कि प्रभु, मृत्यु से पहले मृत्यु की पहचान करने में सहायता दें। पृ छा है ईश्वर समर्पण ने। -समझने की बात है। जीवेषणा मृत्यु के समय बहुत घनी हो जाती है। स्वभावतः। जब जीवन हाथ से छूटने लगता है तो हम जीवन को और कसकर पकड़ना चाहते हैं। जब जीवन हाथ में होता है तब पकड़ने की कोई जरूरत ही नहीं होती है। जो तुम्हारे पास है उसे तुम थोड़े ही पकड़ते हो, जो जाने लगा, उसे तुम पकड़ते हो। जो तुम्हारे पास है ही, तुम पकड़ो या न पकड़ो, उसकी कौन चिंता करता है! लेकिन जिस दिन तुम पाते हो कि छोड़कर जाने लगा, उस दिन तुम पकड़ते हो, उस दिन तुम दीवाने हो जाते हो। मृत्यु के क्षण में जीवेषणा बहुत गहरी हो जाती है, आत्यंतिक हो जाती है, चरम हो जाती है। जीवनभर शायद जीवन में बहुत रस न लिया हो, जीवनभर चाहे साधु जैसे कोई जीआ हो, लेकिन मरते क्षण में असली पहचान होती है। मरते क्षण में कसौटी है। मरते वक्त पता चलता है कि इस आदमी की जीवेषणा थी या नहीं। मरते वक्त जो जीवन को बिना पकड़े, प्रसन्न भाव से, जरा भी रोता हुआ नहीं, जरा भी चीखता-पुकारता नहीं, सहजभाव से मृत्यु में लीन हो जाता है, जरा भी शिकायत नहीं, वही समझो कि जीवेषणा से मुक्त हुआ। मगर जीवेषणा की कसौटी आती तभी है जब मौत आती है। बढ़ापे में आदमी ज्यादा जीवन में उत्सुक हो जाता है, क्योंकि पैर डगमगाने लगते हैं, मौत करीब आने लगती है। अब तो अगर पकड़कर नहीं रखा जीवन को तो यह गया। तो यह पंछी कभी भी उड़ जाने को तैयार है! तो सब द्वार-दरवाजे आदमी बंद कर लेता है और थोड़ी देर जी लें। पहले तो जीवन ऐसे लुटाया कि कभी फिकर नहीं की बहुत। __लोगों से पूछो, जिंदगी में तो लोगों के पास समय काटने के लिए उपाय नहीं हैं! लोग कहते हैं, समय काट रहे हैं। कोई ताश खेल रहा है, कोई शराब पी रहा है, कोई जुआ खेल रहा है, कोई होटल में बैठा है, कोई क्लबघर में बैठा है। उनसे पूछो, क्या कर रहे हो ? वे कहते हैं, समय काट रहे हैं। जैसे समय जरूरत से ज्यादा है, तो काट रहे हैं उसे, क्या करें! यही आदमी मौत के वक्त चीखेगा-चिल्लाएगा कि.और चौबीस घंटे मिल जाते, एक रात और पूर्णिमा का चांद देख लेता, एक रात और कर लेता प्रेम, एक 284

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