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सत्य अनुभव है अंतश्चक्षु का रात और रह लेता अपने प्रियजनों के बीच, एक बार और सूरज ऊग जाता, एक वसंत और देख लेता, एक बार और देखता खिलते फूल, एक बार और सुनता गीत गाते पक्षी - पकड़ता है ! अब सब जा रहा है, अब नहीं सूझता उसे कि क्या करे; पहले समय काटता था !
तुम सोचते हो, तुम समय काट रहे हो; तुम गलती में हो, समय तुम्हें काट रहा है। तुम समय को क्या काटोगे ? तुम समय को कैसे काटोगे ? आदमी के पास कोई आरा नहीं है जिससे समय काटा जा सके। समय इतना सूक्ष्म है, कोई आरा उसे नहीं काटता है। समय का आरा तुम्हें काटता जाता है। जब तुम ताश खेलते हो और कहते हो, समय काट रहे हैं, तो समय हंसता है। समय तुम्हें काट रहा है, समय तुम्हारी मौत को करीब ला रहा है। जिस दिन मौत द्वार पर खड़ी हो जाएगी, उस दिन मुश्किल में पड़ोगे ।
एक सूफी कथा है। एक लकड़हारा सत्तर साल का हो गया है, लकड़ियां ढोते ढोते जिंदगी बीत गयी, कई बार सोचा कि मर क्यों न जाऊं ! कई बार परमात्मा से प्रार्थना की कि हे प्रभु, मेरी मौत क्यों नहीं भेज देता, सार क्या है इस जीवन में ! रोज लकड़ी काटना, रोज लकड़ी बेचना, थक गया हूं! किसी तरह रोजी-रोटी जुटा पाता हूं। फिर भी पूरा पेट नहीं भरता । एक जून मिल जाए तो बहुत । कभी-कभी दोनों जून भी उपवास हो जाता है। कभी वर्षा ज्यादा दिन हो जाती है, लकड़ी नहीं काटने जा पाता। फिर बूढ़ा भी हो गया हूं, कभी बीमार हो जाता हूं, और लकड़ी काटने से मिलता कितना है !
एक दिन लौटता था थका-मांदा, खांसता-खंखारता, अपने गट्ठर को लिये । और बीच में एकदम ऐसा उसे लगा कि अब बिलकुल व्यर्थ है, मेरा जीवन यह अब मैं क्यों ढो रहा हूं ! उसने गट्ठर नीचे पटक दिया, आकाश की तरफ हाथ जोड़कर कहा कि मृत्यु, तू सब को आती है और मुझे नहीं आती! हे यमदूत, तुम मुझे क्या भूल ही गये हो, उठा लो अब !
संयोग की बात, ऐसा अक्सर तो होता नहीं, उस दिन हो गया, यमदूत पास से ही गुजरते थे - किसी को लेने जा रहे होंगे — सोचा कि बूढ़ा बड़े हृदय से कातर होकर पुकार रहा है, तो यमदूत आ गये। उन्होंने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोले क्या भाई, क्या काम है ? बूढ़े ने देखा, मौत सामने खड़ी है, प्राण कंप गये ! कई दफे जिंदगी में बुलायी थी मौत - बुलाने का एक मजा है, जब तक आए न । अब मौत सामने खड़ी थी तो प्राण कंप गये, भूल ही गया मरने इत्यादि की बातें । बोला, कुछ नहीं, और कुछ नहीं, गट्ठर मेरा नीचे गिर गया है। यहां कोई उठाने वाला न दिखा इसलिए आपको बुलाया, जरा उठा दें और नमस्कार, कोई आने की जरूरत नहीं है ! और ऐसे तो हम जिंदगीभर कहते रहे, मुझे मरना नहीं है। यह सिर्फ गट्ठर मेरा उठाकर मेरे सिर पर रख दें।
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