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एस धम्मो सनंतनो
जिस गट्ठर से परेशान था, उसी को यमदूत से उठवाकर सिर पर रख लिया। उस दिन उस बूढ़े की पुलक देखते जब वह घर की तरफ आया! जवान हो गया था फिर से, बड़ा प्रसन्न था। बड़ा प्रसन्न था कि बच गये मौत से।
मौत के क्षण में जीवेषणा प्रगाढ़ हो जाती है। ईश्वर भाई ने पूछा कि 'मां पचास वर्षों से जैन-साधना करती थी।'
अब यह भी सोचना चाहिए कि जो पचास साल से जैन-साधना चलती थी, वह भी किसलिए चलती थी? वह भी जीवेषणा हो सकती है। होगी ही, तभी तो मौत के क्षण में जीवेषणा प्रगाढ़ हो गयी। आदमी धर्म की साधना भी किसलिए करता है, इसलिए करता है कि और बड़ा जीवन मिले, और अच्छा जीवन मिले, स्वर्ग का जीवन मिले। मगर है जीवेषणा।
तुम्हारे तथाकथित मुनि और तुम्हारे तथाकथित साधु-संन्यासी और महात्मा, अगर तुम उनके भीतर गौर से झांककर देखोगे तो तुमसे ज्यादा लोभी हैं। तुम तो क्षणभंगुर में अपना किसी तरह गुजारे ले रहे हो, मगर वे शाश्वत की मांग कर रहे हैं। वे कहते हैं, क्षणभंगुर से हमारी तृप्ति नहीं है, हमें तो शाश्वत मिलेगा तो हम तृप्त होंगे। क्या रखा है इन मकानों में मिट्टी-पत्थर के! हमें तो स्वर्ग के मकान चाहिए, सोने-चांदी के। क्या रखा है इस संसार के मोह में। हमें तो स्वर्ग चाहिए, वैकुंठ चाहिए, हमें तो स्वर्ग-सुख चाहिए, हमें तो कल्पतरु चाहिए जिनके नीचे बैठे और वासनाएं तृप्त हो जाएं।
तुम्हारे सारे शास्त्र जीवेषणाओं से भरे हैं। तुम्हारी सारी प्रार्थनाएं जीवेषणाओं से भरी हैं। तुम वेद और कुरान को उठाकर देखो, तो तुम यही पाओगे, कि आदमी यहां भी मांग रहा है, वहां भी मांग रहा है। और तुम्हारे मुनि, साधु, संन्यासी तुम्हें क्या समझा रहे हैं? वे यही समझा रहे हैं कि तुम यहां व्यर्थ समय खराब मत करो, इसी समय को ठीक से लगा दो, तो बड़ा सुखद जीवन मिल सकता है-परलोक में। ___तो ईश्वर भाई कहते हैं कि 'मेरी मां पचास वर्षों से जैन-साधना नियमित रूप से करती है।' ___उस साधना में भी और अच्छे जीवन को पाने की वासना रही होगी। वह साधना जीवेषणा से मुक्त कराने वाली साधना नहीं है। जीवेषणा को और अच्छे तल पर स्थापित कराने वाली साधना है। मैं साधक उसे कहता हूं, जो जीवेषणा की व्यर्थता समझने की चेष्टा करता है। _____ फर्क समझ लेना। एक आदमी इस जीवन से ऊब गया है तो कोई दूसरे जीवन की मांग कर रहा है, लेकिन क्या फर्क पड़ता है? यहां से ऊब गया तो वहां जीवन मांग रहा है, कोई फर्क नहीं पड़ता, कोई भेद नहीं है। मरते वक्त कसौटी हो जाएगी। मरते वक्त सब साफ हो जाएगा।
तो पचास वर्ष से जो जैन-साधना की थी, उसकी अब चरम कसौटी है। अब
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