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एस धम्मो सनंतनो
की पूछने से क्या होगा! अभी तुम बीमार हो, तुम स्वास्थ्य का अनुभव भी नहीं कर सकोगे। कोई लाख सिर पटके और समझाए, तुम तक बात नहीं पहुंचेगी, नहीं पहुंचेगी। तो औषधि की बात समझायी जा सकती है, औषधि खोजो, सत्य की बात मत पूछो। औषधि ले लो, बीमारी कट जाए, तो जो बच रहेगा वही स्वास्थ्य है, वही सत्य है।
जिस दिन तुम शांत हो जाओगे, उस दिन तुम्हारे भीतर जो मौजूद होगा, वही सत्य है। जिस दिन तुम निर्विचार हो जाओगे, कोई विचार की तरंग न होगी, उस दिन तुम्हारे भीतर जो निधूम ज्योति जलेगी, वही सत्य है। जिस क्षण तुम्हारे जीवन से सारी वासना विदा हो जाएगी, उस दिन निर्वासना में तुम्हारे भीतर जो प्रकाश और आलोक होगा, वही सत्य है। जिस दिन तुम जानोगे कि न मैं देह हूं, जिस दिन तुम जानोगे कि न मैं मन हूं, उस दिन तुम जो जानोगे, वही तुम हो, वही सत्य है।
लेकिन उसे कैसे कोई कहे! लिंग शू ने बातें तो बहुत कही थीं, लेकिन उन बातों में उसके जीवन का असली स्वर न था। असली स्वर तो मौन था।
शिष्यों ने जब स्मारक बनाया तो वे चाहते थे, कुछ ऐसी बात लिखी जाए स्मारक पर, संक्षिप्त शब्दों में, ताकि लिंग शू के पूरे जीवन के संबंध में इशारा हो जाए। वे कुछ सोच न सके। उन्होंने बहुत सिर मारा, लेकिन वह आदमी असली बातों पर मौन ही रहा था, व्यर्थ की बातों पर उन्हें लगता था बोला. सार्थक बातों पर चुप रहा। हमने कुछ पूछा, इसने कुछ कहा। तो इसके बाबत लिखें क्या? इसने जो कहा था, वह लिखें? वह जंचता नहीं, क्योंकि वह इसके जीवन का असली स्वर न था। जो इसने नहीं कहा, उसको कैसे लिखें? वही इसका असली स्वर था। '
तो वे एक दूसरे सदगुरु के पास गये पूछने कि हम क्या लिखें? लिंग शू की कब्र तैयार हो गयी-संगमरमर की प्यारी कब्र बनायी है-उसकी कब्र पर कुछ लिखना है, जो इंगित दे, सदियों तक इशारा करे। जिस सदगुरु से उन्होंने पूछा, उसका नाम था, यून मैन। यून मैन अधिकतर एक ही शब्द में बोलता था। जैसे लिंग शू चुप रहता था, मौन हो जाता था, यून मैन जब कोई कुछ पूछता था तो अक्सर एक ही शब्द में उत्तर देता था। समझो तो ठीक, न समझो तो ठीक। जब शिष्यों ने यून मैन से पूछा तो यून मैन थोड़ी देर चुप रहा और फिर जोर से बोला-सदगुरु! मास्टर! बस इतना लिख दो। __ और लिंग शू की कब्र पर अभी भी लिखा हुआ है-सदगुरु। कुछ और नहीं लिखा है। बड़ी अजीब बात यून मैन ने कही कि सदगुरु। क्योंकि सत्य को कभी नहीं बोला, इसलिए सदगुरु। सत्य तक पहुंचने का मार्ग जरूर बताया, लेकिन सत्य क्या है, कभी नहीं बताया, इसलिए सदगुरु। असदगुरु वही है जो तुम्हें सत्य क्या है, यह तो बताए; और सत्य तक कैसे पहुंचा जाए, यह कभी न बताए। और जो तुम्हें यह न बताए कि सत्य तक कैसे पहुंचा जाए, उसकी सत्य के संबंध में की गयी परिभाषाएं
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