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अकेला होना नियति है
घाट पर पांच सौ बैलगाड़ियां लिए वासनाओं में उलझा था ? सच में ऐसा हुआ, कब हुआ? किस तिथि में हुआ ? फिर बुद्ध ने कैसे उसके विचार पढ़े ? ऐसा हुआ ? ऐसा हो सकता है ? फिर सात दिन में वह समाधि को उपलब्ध हो गया, यह बात जंचती नहीं। इतनी वासनाओं में उलझा हुआ आदमी एकदम से रूपांतरित हो गया, यह बात हो कैसे सकती है ?
बहुत ऐसे लोग हैं जो इतिहास का विचार करते हैं, संभावना का विचार करते हैं, वे चूक जाते । ये कथाएं इतिहास नहीं हैं, ये कथाएं पुराण हैं । पुराण और इतिहास में फर्क है। इतिहास का मतलब होता है, जो हुआ; पुराण का अर्थ होता है, जो अभी भी हो रहा है। फर्क समझ लेना — इतिहास का मतलब है जो होकर चुक गया, पुराण का मतलब है जो सदा हो रहा है। यह कथा पुराण है।
इस देश में हमने इतिहास तो लिखा ही नहीं । हमने इतिहास की बहुत फिकर नहीं की। इतिहास तो दो कौड़ी की बात है। इससे क्या मूल्य है कि किसी सुबह, फलां तिथि में, सोमवार के दिन, फलां वर्ष में, फलां संवत में, फलां व्यक्ति के साथ यह घटना घटी या नहीं घटी ? इसका कोई मूल्य नहीं है। श्रावस्ती रही हो, न रही हो, नदी-तट रहा हो, न रहा हो; यह युवक वहां ठहरा हो, न ठहरा हो; इससे कुछ अंतर नहीं है। समय की नगरी के तट पर हम सब ठहरे हैं। समय की धार बही जा रही है । और हम रेत पर अपने-अपने भवन बनाने की योजनाएं कर रहे हैं।
और सदा इस जगत में बुद्धपुरुष हैं, जो तुम्हें चेता रहे हैं, जगा रहे हैं । सदा बुद्धपुरुष हैं, जो तुम्हारे मन को पढ़ने में समर्थ हैं। सदा बुद्धपुरुष हैं, जो तुम्हें एक ही बात याद दिला रहे हैं कि मौत आती है, मौत आ रही है, यह मौत आ गयी, बस थोड़ी दूर और; अभी कुछ कर लो, देर तो हो चुकी है, लेकिन अभी भी कुछ कर लो तो बहुत देर नहीं हुई है ।
इसे मैं कहता हूं पुराण । पुराण का शाश्वत मूल्य है । इतिहास का कोई बड़ा मूल्य नहीं है। इतिहास तो कभी घटता है, मगर पुराण सदा घटता रहता है। पुराण का अर्थ है— पहले भी घटा, अभी भी घट रहा है, आगे भी घटेगा । इस पुराण का मतलब समझ लेना । जो कभी चुकता नहीं, पुरता नहीं, पुराण । घटता ही रहता, होता ही रहता। सदा ऐसा हुआ है, सदा ऐसा हो रहा है और सदा ऐसा होता रहेगा । इतिहास समय में घटता है, पुराण शाश्वत की तरफ इंगित करता है ।
जिस दिन तुम इन सूत्र - संदर्भों को इस भाव में समझोगे, तुम पाओगे, ये तुम्हारे लिए सीधे-सीधे दिए गए सूत्र हैं—ये तुम्हारे लिए हैं। यह तुम्हारी बीमारी का उपचार है । यह औषधि तुम्हारे लिए है ।
नहीं तो अक्सर ऐसा होता है, किसी और को कहा बुद्ध ने, ढाई हजार साल पहले कहा बुद्ध ने, अब तो संगत भी नहीं है । फिर किसी को कहा था, उसके लिए संगत रहा होगा।
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