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एस धम्मो सनंतनो
बुद्धपुरुष जो कहते हैं, वह एक गहरे अर्थ में सदा ही संगत होता है। परिस्थिति ऊपर से बदल जाती है, भीतर से आदमी नहीं बदलता। आदमी वही का वही है-वैसा ही रुग्ण, वैसा ही क्रुद्ध, वैसा ही कामी, वैसा ही लोभी, वैसा ही शेखचिल्ली। कोई फर्क नहीं हुआ। अगर बुद्ध आज फिर पैदा हों पच्चीस सौ साल के बाद, तो तुम्हें देखकर उन्हें पहचानने में जरा भी अड़चन न होगी, हालांकि तुम्हारे सामान देखकर अड़चन होगी। कार उन्होंने नहीं देखी थी, रेडियो उन्होंने नहीं देखा था, और टेलीविजन नहीं देखा था। तुम्हारा घर देखकर चौंकेंगे, तुम्हें देखकर जरा भी नहीं चौंकेंगे। ____ फर्क समझ लेना! तुम्हारा घर देखेंगे तो जरूर चौंक जाएंगे, रेडियो और टेलीविजन और बिजली और पंखा और फ्रिज और कार और सब देखकर चौंक जाएंगे, एक-एक चीज को पूछने लगेंगे, यह क्या है? यह कैसे हुई? यह कब हुई? यह हो भी कैसे सकती है! उन्होंने बैलगाड़ियां देखी थीं, हाथ से झलते पंखे देखे थे, बिजली का कोई पता न था, फ्रिज तो होते न थे, उन्होंने दूसरे तरह की दुनिया देखी थी। लेकिन आदमी...जब वह तुम्हारी तरफ देखेंगे, तो उन्हें जरा भी विस्मय न होगा, तुम वही के वही, वही युवक, श्रावस्ती के बाहर ठहरा, पांच सौ बैलगाड़ियों में सामान भरे। सोच रहा है, ऐसे महल बनाऊंगा, ऐसी सुंदरियां पालुंगा, ऐसी-ऐसी योजनाएं, ऐसी-ऐसी कामनाएं पूरी करूंगा। सालभर और ऐसा धंधा चल जाए, तो लखपति हो जाऊंगा।...तुम्हें देखकर जरा भी न चौंकेंगे।
निश्चित ही वह युवक अगर सोचता तो सोचता, कब मेरे पास हजार बैलगाड़ियां हो जाएं। स्वभावतः। तुम बैलगाड़ियों की सोचोगे ही नहीं। बैलगाड़ी की दुनिया गयी। लेकिन आदमी? आदमी वही का वही। सिक्के बदल जाते हैं, लोभ नहीं बदला। वह युवक और तरह के सिक्के गिनता था, तुम और तरह के नोट गिनोगे, मगर गिनने वाला मन नहीं बदला। संग्रह करने वाला मन नहीं बदला। आदमी नहीं बदला है। ___ आदमी तो बदलता ही एक चीज से है, वह है ध्यान। समय से नहीं बदलता। समय तो घूमता चला जाता है, आदमी वही का वही, चीजें बदल जाती हैं। वासना के विषय बदल जाते हैं, लेकिन वासना नहीं बदलती।
तुम्हें देखकर बुद्ध को जरा भी अड़चन न होगी। तुम्हें देखकर वह तत्क्षण पहचान लेंगे अपने पुराने परिचितों को। कोई भेद नहीं होगा। आदमी ठीक वैसा का वैसा है।
एक कहावत है कि सूरज के तले कुछ भी नया नहीं। और दूसरी कहावत है कि सूरज के तले सब कुछ नया है। दोनों कहावतें सही हैं। जहां तक बाहर की बातों का संबंध है, सूरज के तले सब कुछ नया है, कुछ भी पुराना नहीं है। जहां तक भीतर की बातों का संबंध है, सूरज के तले सब कुछ पुराना है, कुछ भी नया नहीं है। घर
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