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एस धम्मो सनंतनो
सूत्र -संदर्भ
भगवान श्रावस्ती नगर के बाहर ठहरे थे। उनके निकट ही नदी-तट पर एक युवा वणिक भी ठहरा था। उसके पास पांच सौ गाड़ियां थीं, जो बहुमूल्य वस्त्रों और अन्य प्रसाधन-सामग्रियों से भरी थीं। वह श्रावस्ती में अपना सामान बेचकर खूब कमाई कर रहा था। उसके पास में ही भगवान ठहरे थे, लेकिन अब तक उसने उनकी ओर ध्यान भी नहीं दिया था।
शायद दिखायी तो पड़े ही होंगे। हजारों भिक्षुओं का भी वहां निवास था; न दिखायी पड़े हों, ऐसा तो नहीं। लेकिन उसके मन से संगति नहीं थी। जो धन की. यात्रा पर निकला हो, उसका ध्यान की तरफ ध्यान नहीं जाता। जो अभी महत्वाकांक्षा से भरा हो, उसे संन्यासी दिखायी नहीं पड़ता। जिसके मन पर संसार के मेघ घिरे हों, उसे निर्वाण का प्रकाश दिखायी नहीं पड़ता। आच्छादित अपने ही मेघों में रहा होगा।
भगवान पास ही ठहरे थे, लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया था। ।
या कभी-कभार अगर ध्यान चला भी गया हो, उसके बावजूद, तो सोचा होगा, पागल हैं। तो सोचा होगा, इन सबको क्या हो गया? तो सोचा होगा, लोग कैसी-कैसी व्यर्थ की बातों में उलझ जाते हैं। और हजार दलीलें दी होंगी अपने मन को कि मैं ही भला, मैं ही स्वस्थ, मैं ही तर्कयुक्त।
एक दिन नदी पर टहलता हुआ वह भविष्य की बड़ी-बड़ी कल्पनाएं कर रहा था। सोचता था कि धंधा यदि ऐसा ही चलता रहा तो वर्षभर में ही लखपति हो जाऊंगा। फिर विवाह करूंगा। और अनेक सुंदरियों के चित्र उसकी आंखों में घूमने लगे। और ऐसा महल बनाऊंगा-वसंत के लिए अलग, हेमंत के लिए अलग, हर ऋतु के लिए अलग, और यह करूंगा और वह करूंगा। और जब ऐसे पूरे शेखचिल्लीपन में खोया था और कल्पनाओं के लड्डुओं का भोग कर रहा था, तब भगवान ने उसे देखा और वे हंसे।
भगवान बैठे हैं एक वृक्ष के तले, उनके पास ही भिक्षु आनंद बैठा है। अकारण, बिना किसी बात के, बिना किसी प्रगट आधार के भगवान को हंसते देखकर आनंद चकित हुआ। उसने पूछा, भगवान! आप हंसते हैं! न मैंने कुछ कहा, न आपने कुछ कहा, न यहां कुछ हुआ, अकारण क्यों हंसते हैं? किस कारण हंसते हैं? किस बात पर हंसते हैं? भगवान ने कहा, आनंद, उस युवा वणिक को देखते हो दूर नदी के तट पर ? उसके चित्त की कल्पना-तरंगों को देखकर ही मुझे हंसी आ गयी। वह लंबी योजनाएं बना रहा है, किंतु उसकी आयु केवल सप्ताहभर की और शेष है। मृत्यु द्वार पर दस्तक दे रही है, पर उसे अपनी वासनाओं के कोलाहल के कारण कुछ भी सुनायी नहीं पड़ता। उसकी मूर्छा पर मुझे हंसी भी आती है और दया भी।
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