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आचरण बोध की छाया है बच्चे हों, बड़ा मकान हो, कार हो, कुछ भी सार न मालूम पड़ेगा, अगर वह सुख याद रहे। _____ तो यहूदी कथा कहती है कि एक देवता उतरता है करुणावश और हर बच्चे के माथे पर सिर्फ हाथ फेर देता है। उस हाथ के फेरते ही पर्दा बंद हो जाता है, उसे भूल जाता है परमात्मा। सुख भूल गया, फिर यह जीवन के दुखों में ही सोचने लगता है, सुख होगा।
उस पर्दे को फिर से खोलना है, जो देवताओं ने बंद कर दिया है। मुझे तो नहीं लगता कि कोई देवता बंद करते हैं। देवता ऐसी मूढ़ता नहीं कर सकते। लेकिन समाज बंद कर देता है। शायद कहानी उसी की सूचना दे रही है। मां-बाप, परिवार, समाज, स्कूल बंद कर देते हैं, पर्दे को डाल देते हैं। ऐसा डाल देते हैं कि तुम भूल ही जाते हो कि यहां द्वार है, तुम समझने लगते हो दीवार है। ध्यान का अर्थ है, इस पर्दे को हटाना।
और इसे अनायास होने दो, इसे कभी-कभी तुम्हें पकड़ लेने दो-और जब तुम्हें यह तरंग पकड़े तो लाख काम छोड़कर बैठ जाना। क्योंकि इससे बहुमूल्य कोई
और काम ही नहीं है। रात हो कि दिन, सुबह हो कि सांझ, फिर मत देखना। कुछ चूकोगे नहीं तुम, कुछ खोएगा नहीं। और अपूर्व होगी तुम्हारी संपदा फिर। और यह संपदा तुम्हारे भीतर पड़ी है, बस पर्दा हटाने की बात है।
'ध्यान क्या है?' ध्यान भीतर पड़े पर्दे को हटाना है।
चौथा प्रश्नः
मेरे प्रभ. मैंने संन्यास नहीं लिया है और लेने की इच्छा भी नहीं है। न मेरे प्राणों में परमात्मा को पाने की आकांक्षा है। तो फिर मेरे और आपके बीच संबंध क्या है? और मैं आपके पास बार-बार क्यों आती हूं?
पछा है हेमा ने।
जिन्होंने संन्यास लिया है, वे तुम सोचती हो संन्यास लेने आए थे? जो मेरे पास आ गए हैं, तुम सोचती हो वे सब परमात्मा की खोज में निकले थे? तो तुम गलती में हो। न तो वे परमात्मा की खोज में आए थे क्योंकि हम परमात्मा की खोज कैसे करें। हमें परमात्मा की याद ही नहीं रही है। खोज तो उसकी होती है जिसकी हमें याद हो। खोज तो उसकी होती है जिसका हमें कभी कोई अनुभव हुआ
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