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एस धम्मो सनंतनो
जिनके हृदय में बड़ा काव्य है, बड़ा नृत्य छिपा है। इनको खोजना पड़ता है, इनको निकालना पड़ता है। बहुत सी स्त्रियां हैं जिनके भीतर बड़ी प्रखर बुद्धिमत्ता छिपी है, इनको भी निकालना पड़ता है, इनको भी खोजना पड़ता है।
आखिरी प्रश्नः
पूछा है शीला ने कि मैं आलसी हूं और बुद्ध का एक शिष्य आलसी था, उसकी ऐसी गति हुई! मैं आलसी हूं, आपने मुझे क्यों स्वीकार किया है? और मैं सोचती हूं कि मैं यहां क्या कर रही हूं?
में | रे साथ चलेगा!
बुद्ध के मार्ग पर संकल्प, संघर्ष। वहां आलसी नहीं चलेगा। मेरे द्वार सबके लिए खुले हैं। बुद्ध के द्वार किसी विशिष्ट के लिए खुले हैं। मेरे साथ आलसी भी चलेगा। क्योंकि आलसी भी अपनी व्यवस्था का उपयोग कर सकता है परमात्मा को पाने के लिए। उसका आलस्य ही द्वार बन सकता है परमात्मा को पाने के लिए। समर्पण–छोड़ दे सब उसके चरणों में! कुछ भी न करे, करने का भाव ही न रखे, कह दे, अब तुम जो करवाओगे, करेंगे। अभी बाबा मलूकदास की हम बात करते थे न कुछ दिन पहले
अजगर करै न चाकरी पंछी करै न काम।
दास मलूका कह गए सबके दाता राम।। सो शीला, दास मलूका हो जा! छोड़ फिकर! जिनको लगता हो कि हम संघर्ष में नहीं उतर सकते, कोई जरूरत भी नहीं उतरने की। परमात्मा सबका है, तुम जैसे हो वहीं से कोई रास्ता निकलेगा। तुम्हें बदलने की भी बहुत जरूरत नहीं है, तुम जैसे हो इसको ठीक से समझ लो, और उसी के अनुकूल अपने जीवन को उतर जाने दो, सहज। आलस्य है, तो आलस्य को ही साधना बना लेंगे। कर्मठता है, तो कर्मठता को ही साधना बना लेंगे। मेरे लिए मूल्य, तुम कैसे हो, इसका ज्यादा है। मैं किसी बंधी हुई धारणा का गुलाम नहीं हूं। मुझे सब स्वीकार हैं। परमात्मा को जब तुम स्वीकार हो तो मुझे क्यों अस्वीकार होओ?
अब परमात्मा को अगर शीला स्वीकार न हो तो कभी की सांस देना बंद कर दे। अभी सांस चलती है! उठाता, बिठाता, सुलाता, पूरी फिकर लेता। जब परमात्मा को शीला स्वीकार है, तब मैं बाधा देने वाला कौन हूं? मुझे भी स्वीकार है। __ इतना ही खयाल रखना जरूरी है कि शीला जैसा व्यक्ति अगर संकल्प की यात्रा
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