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एकांत ध्यान की भूमिका है
'भिक्षुओ, वन को काटो, वृक्ष को नहीं । वन से भय उत्पन्न होता है। वन और झाड़ी को काटकर निर्वन हो जाओ।'
तुम्हारे भीतर जिस दिन ध्यान आ गया, सब गये – काम, लोभ, मद, मत्सर । सब विचार गये। सारा जंगल का जंगल चला गया। निर्वन हो गये। ऐसे हो गये जैसे खाली आकाश - जब बदलियां विदा हो जाती हैं; निर्विचार चैतन्य । और निर्विचार चैतन्य ही ध्यान है।
आज इतना ही ।
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