Book Title: Dhammapada 09
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 234
________________ आचरण बोध की छाया है हो जाती है। आचरण उसी क्षण रूपांतरित हो जाता है। लेकिन अक्सर ऐसा होता है, हम गुरु की तलाश नहीं करते। किताब सस्ती है। बाजार में मिलती है। और किताब तुम्हारे ऊपर बहुत ज्यादा चुनौतियां खड़ी नहीं करती। पढ़ना हो तब पढ़ लेना, न पढ़ना हो न पढ़ना। खोलना हो तब खोल लेना, न खोलना हो तो न खोलना। आमतौर से धार्मिक किताबें कोई खोलता नहीं! रखी रहती हैं। एक द्वार पर शब्दकोश बेचने वाला एक आदमी खड़ा था। उसने दस्तक दी और उसने कहा कि बड़ी कीमती डिक्शनरियां हैं, शब्दकोश लाया हूं, खरीद लें। महिला ने द्वार खोला, गृहपत्नी ने, और उसने कहा, क्या करेंगे, देखते नहीं, शब्दकोश तो वह रखा है! टेबल पर रखी हुई एक किताब की तरफ दशारा किया, टालने को, इस विक्रेता को। उसने कहा कि वह शब्दकोश नहीं है, वह बाइबिल है। इतनी दर से उसने पहचान लिया कि बाइबिल है, वह महिला भी चकित हुई थी तो बाइबिल ही उसने कहा, भाई मेरे, तूने इतने दूर से कैसे पहचाना कि बाइबिल है? उसने कहा, देखते नहीं कितनी धूल जमी है? इतनी धूल तो सिर्फ बाइबिल पर ही जमी होती है—कौन पढ़ता है! रखी रहती! बाइबिल दुनिया में सबसे ज्यादा छपने वाली किताब है और सबसे कम पढ़ी जाने वाली किताब। धूल ही धूल जमती रहती है। धूल खाने को ही बनी है। कभी वर्ष में एकाध दफे झाड़-पोंछकर-अगर तुमको बहुत ही याद आ गयी-दो फूल चढ़ा दोगे। अगर और भी ज्यादा मन हो गया तो सिर झुका लोगे। ___ मगर न सिर झुकाने से किताब तुम्हें जगा सकती है, न फूल चढ़ाने से तुम्हें जगा सकती है। सदगुरु चाहिए। सदगुरु के पास ध्यान सीखने की कला आ जाए, बस, फिर ज्ञान उत्पन्न होगा। और ज्ञान से आचरण अपने आप चला आता है। तुम कहते हो, 'यह बात मेरी समझ में नहीं आती।' यह समझ में आएगी भी नहीं, अनुभव ही करना होगा। इसकी प्रतीति करनी होगी। समझाने के सब उपाय ज्यादा से ज्यादा तुम्हें राजी कर सकेंगे प्रतीति करने के लिए। लेकिन समझ से ही काम चलने वाला नहीं है। यह बात अनुभव की है। जिसने कभी गुड़ का स्वाद न लिया हो, उसे लाख समझाओ कि मीठा, मीठा, मीठा, यह मीठा शब्द कुछ उसके भीतर पैदा नहीं करता। इस मीठे शब्द में कुछ मिठास नहीं मालूम होती। लेकिन उसने अनुभव किया हो गुड़ का, एक बार भी अनुभव किया हो कि गुड़ मीठा, तो जैसे ही तुम कहते गुड़, भीतर रस घुलने लगता। तुमने देखा न, कोई नींबू का नाम ले दे तो भीतर लार बहने लगती-अनुभव किया है तो। यह मत सोचना कि जिस आदमी ने नींबू का अनुभव नहीं किया है, उसके सामने तुम नींबू-नींबू चिल्लाओगे तो उसे कुछ लार बहेगी। कुछ भी न होगा। लेकिन जिसने नींबू का अनुभव किया है, स्वाद लिया है—एक बार भी जीवन में 221

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