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जुहो! जुहो! जुहो! टटोलता है, अब तो लकड़ी फेंक देता है। हालांकि पुरानी आदत के कारण हो सकता है एकदम न फेंके।
ऐसा हुआ। जीसस ने एक अंधे की आंखें छू दीं और वह ठीक हो गया। उसने बहुत धन्यवाद दिया और अपनी टेकने की लकड़ी को लेकर चलने लगा। जीसस ने कहा, भाई, लकड़ी तो दे जा। यह लकड़ी कहां ले जा रहा है ! वह अंधा बोला कि नहीं, इसके बिना मैं कैसे चलूंगा ? यही तो मेरा सहारा है।
आंखें ठीक हो गयीं ! मगर पुरानी आदत! हो सकता है चालीस साल से, पचास साल से लकड़ी से टेक-टेककर चलता रहा हो, आज आंखें भी ठीक हो गयीं तो भी एकदम से पचास साल की आदत तो न छूट जाएगी।
सो रामपाल, समझ की लकड़ी छोड़ो, अब आंखें ठीक होने का वक्त आ गया। अब समझ से कुछ जरूरत नहीं। समझ संसार में चाहिए, परमात्मा में नहीं । परमात्मा में प्रेम चाहिए। और प्रेम तो नासमझी का नाम है। प्रेम तो पागलपन है। अब यह पागलपन की शुभ घड़ी आ रही है, इसे उतरने दो।
और आश्वस्त करता हूं, घबड़ाओ मत। यह घबड़ाहट आती है, पैर डगमगाते हैं। उस द्वार पर खड़े होकर बहुत भय भी लगता है। क्योंकि मिटने जैसा है, मौत जैसा है। ध्यान की परम घड़ी में मौत घटती है, मौत यानी अहंकार की मौत । तुम तो मिटे, यह बूंद तो गयी, अब सागर होगा।
लेकिन बूंद को कैसे भरोसा आए, बूंद कैसे जाने कि मैं मिटूंगी और बिलकुल ही न मिट जाऊंगी? बूंद कैसे भरोसा लाए कि मैं सागर में डूबकर बचूंगी और सागर हो जाऊंगी? बीज को कैसे भरोसा आए कि मैं टूटकर जब जमीन में खो जाऊंगा तो वृक्ष पैदा होगा ? होगा, इसका कैसे भरोसा आए? क्योंकि बीज जब तक है तब तक वृक्ष नहीं है, और जब वृक्ष होगा तब बीज नहीं — दोनों का कभी मिलना नहीं होता । इसीलिए श्रद्धा । इसीलिए सदगुरु के हाथ में हाथ हो, उपयोगी है। क्योंकि वह कहेगा, फिकर मत कर, मैं रहा वृक्ष, मेरी तरफ देख; ऐसे ही मैं बीज था और मिट या बीज और वृक्ष हुआ, ऐसे ही तू अभी बीज है, मेरी तरफ देख; ध्यान रख, इस बीज को मिटने दे।
आश्वस्त करता हूं। ठीक हो रहा है। तुम मस्ती में गीत गाते इसमें उतरते चलो। और फिर पूछते हो, 'अगर ठीक... ।'
ऐसी चिंता पैदा होती है कि यह जो हो रहा है, ठीक हो रहा है कि नहीं ठीक हो रहा है? हमारे सब मापदंड छोटे पड़ जाते हैं। हमारे तराजू काम नहीं आते हैं। पुराने हिसाब-किताब, पुरानी कोटियां, कुछ काम नहीं पड़ती हैं, कोई पुराना वर्गीकरण काम नहीं पड़ता। पता नहीं ठीक हो रहा है कि गलत हो रहा है, मैं कहां जा रहा हूं, किसी अनजान रास्ते पर भटक न जाऊं, किसी अंधेरी गली में खो न जाऊं, पता नहीं क्या हो रहा है !
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