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एकांत ध्यान की भूमिका है अथ निबिन्दति दुक्खे एस मग्गो विसुद्धिया।
बुद्ध कहते हैं, यह है विशुद्धि का मार्ग। ध्यान यानी विशुद्धि।
एस. मग्गो विसुद्धिया।
पहला सूत्र, पहला चरण इस विशुद्ध होने के मार्ग का कि सब संसार अनित्य है। दूसरा सूत्र
सब्बे संखारा दुक्खाति।
ये संस्कार दुखरूप हैं। यह सारा संसार दुखरूप है। इसमें अगर जरा सी भी आशा रखी कि शायद कहीं थोड़ा-बहुत सुख छिपा हो, तो उतनी आशा के सहारे ही ध्यान अटक जाएगा।
तुमने अगर सोचा कि ये विचार आए हैं, इनमें से एकाध को चुन लूं जो अच्छा है, शुभ है, सहयोगी है, कल्याणकारी है, शायद इससे लाभ होगा; बाकी को छोड़ दूं, निन्यानबे छोड़ दूं, एक को पकड़ लूं, तो बुद्ध कहते हैं, एक के पीछे बाकी निन्यानबे कतार बांधकर खड़े हो जाएंगे, वह एक भीतर आया कि बाकी भी भीतर आ जाएंगे। तुमने द्वार एक के लिए खोला कि सब भीतर आ जाएंगे। द्वार बंद करना हो तो पूरा ही बंद कर देना। इसमें जरा भी पक्षपात मत करना। अगर तुमको ऐसा लगा कि थोड़ा सा सुख मिल जाए शायद, तो फिर तुम अटके रहोगे।
नहीं, सुख यहां है ही नहीं। बुद्ध का इस पर जोर बड़ा प्रगाढ़ है।
सब्बे संखारा दुक्खाति।
यह सारा संसार दुखरूप है। यह सारा संसार बस दुख ही दुख है। यहां सुख की एक किरण भी नहीं है। यहां कोई आशा न रखो। जिस दिन सारी आशा निराशा हो जाती है, उसी दिन ध्यान का अंकुर फूटने लगता है। ध्यान का अंकुर नहीं फूट रहा है, क्योंकि तुम्हारी आशाएं ध्यान के बीज पर पत्थर की तरह बैठी हैं। ___'सब संसार दुख है, यह जब मनुष्य प्रज्ञा से देख लेता है, तब सभी दुखों से निर्वेद को प्राप्त होता है।'
बड़ी अजीब बात बुद्ध कहते हैं, कि जिस दिन यह दिखायी पड़ जाता है कि सब दुख है, उसी दिन दुख से छुटकारा होने लगता है। क्यों? दुख के बांधने की तरकीब यही है कि दुख जब आता है, तो पहले तो यही बताता है कि मैं सुख हूं। तुम सुख
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