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एस धम्मो सनंतनो
को पकड़ते हो, दुख को तो कोई पकड़ता ही कहां! तुम सुख को पकड़ते हो; दुख पकड़ में आ जाता है, यह दूसरी बात है। मगर तुम गए थे फूल पकड़ने, कांटे चुभ गए यह दूसरी बात है। हर कांटा फूल का धोखा देता है। हर कांटे ने विज्ञापन कर रखा है कि मैं फूल हूं, हर कांटे ने प्रचार कर रखा है कि मैं फूल हूं, आओ मेरे पास, देखो कितना सुंदर हूं-और दूर से सभी कांटे फूल जैसे मालूम होते हैं।
जैसे-जैसे पास आते हो वैसे-वैसे मुश्किल होती है। जब बिलकुल पास आ जाते हो, जब कि हटने का उपाय भी नहीं रह जाता, तब कांटा छाती में चुभ जाता है। लेकिन तब बहुत देर हो गयी होती है।
और आदमी की मूढ़ता ऐसी है कि एक कांटा चुभ जाता है तो वह कहता है, एक कांटे ने धोखा दिया, सभी फूल थोड़े ही झूठ होंगे। यह कांटा झूठ निकला, कहीं
और तलाशेंगे। फिर और दूसरे कांटों के भ्रम में पड़ता है। ऐसे भ्रम चलते ही जाते हैं, यह मृग-मरीचिका अंत ही नहीं आती, इसकी कोई सीमा ही नहीं है। आदमी अनुभव से कुछ सीखता ही नहीं।
बुद्ध कहते हैं, यह सारा संसार दुख है, ऐसा जान लेने से ही दुख से छुटकारा हो जाता है। जहां-जहां सुख हो, जान लेना वहां-वहां दुख होगा। जहां-जहां सुख दिखायी पड़े, बहुत गौर से आंख गड़ाकर देखना, वहां तुम दुख को छिपा हुआ प्रतीक्षा करते पाओगे।
'यही विशुद्धि का मार्ग है।'
अथ निबिन्दति दुक्खे एस मग्गो विसुद्धिया।
और तीसरा सूत्र
सब्बे धम्मा अनत्ताति यदा पचाय पस्सति। अथ निबिन्दति दुक्खे एस मग्गो विसुद्धिया।
'सब धर्म (पंचस्कंध) अनात्म हैं, यह जब मनुष्य प्रज्ञा से देख लेता है, तब सब दुखों से निर्वेद को प्राप्त होता है; यही विशुद्धि का मार्ग है।' __यह बुद्ध की अनूठी बात है। इस बात को बुद्ध ने मनुष्य-जाति को पहली दफा कहा। उनके पहले बुद्धपुरुष हुए, लेकिन किसी ने यह बात इस तरह नहीं कही थी। यह बड़ा क्रांतिकारी सूत्र है।
बुद्ध कहते हैं, न तो पदार्थों में कोई आत्मा है, न तुममें कोई आत्मा है। आत्मा का मतलब होता है, कोई शाश्वत स्थिर तत्व, कहीं भी नहीं है। अशाश्वत है सब। सब अथिर है। न तो पदार्थ में कोई चीज थिर है और न तुममें कोई चीज थिर है। इस
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