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एस धम्मो सनंतनो
कि कभी थोड़ी देर को न-करने का मजा भी लें। और करने वालों ने इस बुरी तरह हमारे मन को आच्छादित किया है कि अगर तुम खाली बैठे हो, तो लोग कहेंगे, आलसी हो। अगर तुम खाली बैठे हो, तो लोग कहेंगे, खाली मत बैठो, खाली मन शैतान का घर हो जाता है। अगर तुम थोड़ी देर को आंख बंद करके बैठे हो, तो लोग कहेंगे, क्या आलस्य कर रहे हो, अरे कुछ करो! कर्मठ बनो! आंख बंद करके तुम बैठते हो तो तुम देख लेते हो, कोई देख तो नहीं रहा है! नहीं तो लोग समझेंगे कि क्या कर रहे हो!
न-करने के संबंध में इतना विरोध है, शांत बैठने के संबंध में इतना विरोध है कि आदमी बैठता भी है तो द्वार-दरवाजे लगाकर, खिड़की बंद करके बैठता है, कि कोई देखे न। क्योंकि लोग कहते हैं, कुछ कर रहे हो तब तो ठीक, कुछ नहीं कर रहे तो फिर क्या कर रहे हो! समय क्यों गंवाते हो? सुनते हो न, लोग कहते हैं, समय धन है, टाइम इज मनी। पागल हैं ये लोग। कहते हैं, समय को निचोड़ लो, कुछ कर गुजरो, कुछ थोड़ा धन और बढ़ा लो, एक पद पर और चढ़ जाओ, तिजोड़ी थोड़ी और बड़ी कर लो, मकान थोड़ा और बड़ा बना लो, कुछ कर गुजरो! थोड़ा समय हाथ में है, अभी तो मौत आएगी, सब पड़ा रह जाएगा, मगर इसकी उन्हें याद भी नहीं। वह कहते हैं, समय का उपयोग कर लो।
करने-करने की बड़ी आपाधापी है। और जो भी जीवन का परम सत्य है, न-करने में उपलब्ध होता है। कर्म से नहीं, अकर्ता के भाव से उपलब्ध होता है। शांत और शून्य दशा में उपलब्ध होता है। करने से संसार मिलता है, न-करने से परमात्मा मिलता है। किये-किये मिट्टी से ज्यादा कुछ हाथ नहीं लगता। सोना तो बरसता है जब तुम न-करने की दशा में आते हो।
तो भेजा उन्हें एकांत में ताकि अव्यस्त हो सकें। अनआकूपाइड। छोटे-मोटे जीवन के रोजमर्रा के काम न रह जाएं। घड़ियां खाली हों। शांत वृक्षों के नीचे बैठ सकें। पक्षियों के गीत सुन सकें। जल-प्रपात का नाद सुन सकें। सरिता की कलकल सुन सकें। हवाओं की मरमर वृक्षों से निकलती हुई सुन सकें। आकाश के चांद-तारे देख सकें।
प्रकृति-सान्निध्य अपूर्व रूप से सहयोगी है।
मनुष्य ने एक दुनिया बना ली है—प्रकृति के विपरीत मनुष्य ने अपनी दुनिया बना ली है। सीमेंट के रास्ते, सीमेंट के मकान, सीमेंट के जंगल आदमी ने बना लिये हैं, उनमें कहीं खबर ही नहीं मिलती कि परमात्मा भी है। बड़े नगर में परमात्मा करीब-करीब मर चुका है। क्योंकि परमात्मा की खबर वहां मिलती है जहां चीजें बढ़ती हैं। पौधा बड़ा होता है तो खबर देता है जीवंत है। अब कोई मकान बड़ा तो होता नहीं, जैसा है वैसा ही होता है। रास्ता सीमेंट का कोई बढ़ता तो नहीं, जैसा है वैसा ही रहता है—मुर्दा है।
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