________________
एस धम्मो सनंतनो
तो तुम पूछते हो, 'अगर ठीक... ।'
अगर नहीं, ठीक ही हो रहा है, बिलकुल ठीक हो रहा है। लेकिन तुम्हारी अड़चन मैं समझता हूं। आज तो तुम्हें कैसे पता चलेगा! ऐसे ही समझो कि जैसे छोटा बच्चा मां के पेट से पैदा होता है। नौ महीने मां के गर्भ में रहा, सब सुख था । सुख ही सुख था, चिंता तो कोई भी न थी, दायित्व कोई न था - नौकरी नहीं, दफ्तर नहीं, कारखाना नहीं, कुछ नहीं - भोजन मिलता था चुपचाप, श्वास भी मां लेती, भोजन भी मां करती, सब मां करती थी, उसे कुछ पता भी नहीं था। इससे ज्यादा निश्चित फिर तो कोई घड़ी होगी नहीं।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि मनुष्य ने जो सुख जाना है नौ महीने मां के गर्भ में, उसी के कारण जीवन में उसे दुख अनुभव होता है। क्योंकि वह तुलना भीतर बैठी है - वह परम सुख का क्षण ! मनोवैज्ञानिक तो यह भी कहते हैं कि मोक्ष की तलाश वस्तुतः उसी गर्भ की पुनः तलाश है।
और इसमें सच्चाई है । इसमें सत्य है । यह जो बच्चा नौ महीने मां के पेट में रहा, आज प्रसव की पीड़ा उठी, और यह बच्चे को मां का पेट धक्के मारने लगा कि बाहर निकल ! स्वभावतः, बच्चा घबड़ाएगा कि यह क्या हो रहा है? बसी-बसायी बस्ती उजड़ी जाती है। सब ठीक-ठाक चल रहा था, यह कौन सी झंझट आ रही है ! और यह जो मां के पेट से निकलने का मार्ग है, यह बड़ा संकरा है, इसमें बड़ी बेचैनी होती है। इस संकरी गली से निकलना पड़ रहा है ! सब तरह से अवरुद्ध हो जाता है, घुटा जाता है, मरा जाता है।
लेकिन उसे क्या पता कि आगे क्या होने को है। आगे का तो उसे कुछ पता भी नहीं हो सकता। उसे तो यह पीड़ा दिखायी पड़ती है, पीछे का सुख दिखायी पड़ता है। वर्तमान की पीड़ा दिखायी पड़ती है, अतीत का सुख दिखायी पड़ता है। भविष्य तो उसे पता नहीं है कि जीवन मिलेगा, कि सूरज, चांद-तारे, कि वृक्ष और फूल और पक्षी और रोशनी और हवाएं और विराट का दर्शन होगा - यह तो उसे कुछ पता नहीं — कि इंद्रधनुष होते हैं, कि सागर में लहरें उठती हैं, इसे तो कुछ पता नहीं कि बाहर क्या है ! यह तो इसी बंद कोठरी को सुख मान रहा था। सुखी था भी।
तो जैसे यह बच्चा घबड़ाता है और पकड़ लेना चाहता है गर्भ को कि निकल न जाए बाहर, ऐसी ही घबड़ाहट साधक को आती है जब समाधि के करीब कदम पड़ते हैं।
तो तुम पूछते हो, 'अगर ठीक, तो फिर यह आंखमिचौनी कब तक ?'
यह ठीक है, बिलकुल ठीक है । और आंखमिचौनी भी तब तक होती रहेगी, जब तक तुम्हारे भीतर जरा भी झिझक है। थोड़ी झिझक है, इसलिए आंखमिचौनी । तुम्हारी झिझक के कारण है। तुम थोड़े अटके -अटके हो। और तुम्हारी झिझक एकदम अस्वाभाविक है, ऐसा भी मैं नहीं कहता। स्वाभाविक ही है, सभी झिझकते
182