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सौंदर्य तो है अंतर्मार्ग में
द्विपदानंच चक्खुमा।
उसमें सौंदर्य घटता है, इन दो पैरों वाले जानवर में, आदमियों में वही सुंदर है जिसके पास आंखें हैं। जो आंखों को उपलब्ध हो गया। जो चक्षुष्मान हो गया। और तो सब अंधे हैं, जो बुद्ध हो गया, जिसके भीतर ध्यान की आंख खुल गयी, वही सुंदर है। और तो सब असुंदर ही हैं। और तो सब लाशें हैं। और तो सब मांस-मज्जा हैं। और तो सब आज नहीं कल मिट्टी में गिरेंगे और खो जाएंगे।
द्विपदानंच चक्खुमा।
आंख वालों की चर्चा करो। बुद्ध यह कह रहे हैं कि मैं यहां बैठा तुम्हारे सामने आंख वाला, तुम अंधों के सौंदर्य की बात कर रहे हो!
एसोव मग्गो नत्थञो दस्सनस्स विसुद्धिया। एतं हि तुम्हे पटिवज्जथ मारस्सेतं पमोहनं ।।
. 'दर्शन की विशुद्धि के लिए यही मार्ग है; दूसरा मार्ग नहीं। इसी पर तुम आरूढ़ होओ; यही मार को मूछित करने वाला है।'
इसी से तुम्हारा शैतान मन हारेगा, अन्यथा नहीं हारेगा। तुम अपने शैतान मन को तो बड़े उपाय दे रहे हो, बाहर की बातें कर रहे हो, इससे तो शैतान मन और मजबूत होगा।
मार बुद्ध-परंपरा में शैतान के लिए दिया गया नाम है। शैतान तुम्हें मार रहा है, प्रतिपल मार रहा है, शैतान तुम्हें मारे डाल रहा है। और यह शैतान कोई बाहर नहीं, तुम्हारा मन है। यह मन तुम्हें बाहर ले जाता है, भटकाता है, इस मन से सावधान होओ।
एसोव मग्गो नत्थजो दस्सनस्स विसुद्धिया।
ऐसे जागोगे तो धीरे-धीरे तुम्हारे भीतर दर्शन की विशुद्धि पैदा होगी, तुम्हारे पास विशुद्ध आंखें आएंगी। उन विशुद्ध आंखों से सत्य जाना जाता है, जीआ जाता है, फिर जीवन-रसधार बहती है।
एतं हि तुम्हे पटिपन्ना दुक्खस्संतं करिस्सथ। अक्खातो वे मया मग्गो अञाय सल्लसंथनं ।।
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