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एस धम्मो सनंतनो
फ्रायड ने भी कहा कि दुख का कारण है। दुख का कारण यह है कि तुम्हारे जीवन की जो नैसर्गिक इच्छाएं हैं, उनको दबाया गया है, उनको प्रगट नहीं होने दिया गया है, इसलिए आदमी विक्षिप्त है।
सौ पागलों में निन्यानबे इसलिए पागल होते हैं कि कामवासना दबायी गयी है, जबरदस्ती दबायी गयी है। जब कामवासना को जबरदस्ती दबा दिया जाता है, तो ऐसा ही समझो कि केतली का ढक्कन दबाए बैठे हो और नीचे आग जल रही है,
और केतली के भीतर पानी उबल रहा है और उबल रहा है और भाप बन रही है और तुम ढक्कन दबाए बैठे हो, अगर विस्फोट न हो तो क्या हो! विस्फोट होगा।
कामवासना अग्नि है, उसे दबाना नहीं है, उसे समझना है। उसका उपयोग करना है। दबायी जाए तो विस्फोट होगा, विक्षिप्तता आएगी। न दबायी जाए, उपयोग कर लिया जाए, ठीक-ठीक दिशा में संलग्न कर दी जाए, सृजनात्मक उपयोग कर लिया जाए, तो संभोग की क्षमता ही समाधि बन जाती है।
तो या तो कामवासना तुम्हें विकृत कर देती है और पागल बना देती है, या कामवासना के ही घोड़े पर सवार हो जाओ अगर ठीक से, तो तुम परमात्मा के द्वार तक पहुंच जाते हो। कामवासना ठीक-ठीक समझ ली जाए तो ब्रह्मचर्य बन जाती है; और समझी न जाए, जबरदस्ती दबायी जाए, तो व्यभिचार बन जाती है, मानसिक व्यभिचार बन जाती है। विकृति बन जाती है। ___ तो मार्क्स ने कहा, समाज में दुख है, क्योंकि शोषण है। फ्रायड ने कहा, मनुष्य विक्षिप्त होता है, पागल होता है, क्योंकि उसकी नैसर्गिकता को दबाया गया है, अवरुद्ध किया गया है। उसकी नैसर्गिकता को बहने का ठीक-ठीक सहज मौका नहीं दिया गया है। ये दोनों ही बुद्ध के आर्य-सत्य हैं।
फिर तीसरा बुद्ध का आर्य-सत्य है कि कारण से मुक्त होने का उपाय है, औषधि है। तो मार्क्स कहता है, उपाय है क्रांति। मार्क्स कहता है, उपाय है सर्वहारा का राज्य; सर्वहारा के हाथ में शक्ति। उपाय है, शोषण के यंत्र को तोड़ देना और एक वर्ग-विहीन समाज की स्थापना। और फ्रायड कहता है, उपाय है, मनोविश्लेषण; अपने दबाए हए मनोवेगों में अंतर्दष्टि, इनसाइट। ___इसलिए मनोविश्लेषक और कुछ नहीं करता, सिर्फ तुम्हारी दबी हुई वासनाओं को प्रगट करवाता है, तुम्हीं से बुलवाता है। धीरे-धीरे, धीरे-धीरे उनको अचेतन से खींचकर चेतन में लाता है, उनको अंधेरे में से पकड़कर प्रकाश में लाता है, उन्हें तुम्हारे सामने खड़ा कर देता है। ___ जिस दिन तुम्हें अंतर्दृष्टि मिल जाती है कि मैं किस कारण पागल हुआ जा रहा हूं, जिस दिन तुम देख लेते अपने भीतर के सारे उपद्रव को जिसमें तुम्हें जबर्दस्ती संलग्न करवाया गया है, उसी दिन तुम पाते हो, औषधि मिल गयी। अब और नहीं दबाना है, यही औषधि है। दबाए हुए को सहज स्थिति में लाना है और आगे दमन
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