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एस धम्मो सनंतनो
जो सेठ थे, बड़े सेठ, वह कभी भी समय पर तो आते नहीं थे, बड़े आदमी कहीं समय पर आते हैं। जब सब आ जाते, महात्मा भी बोलना शुरू कर देते-उन्हीं का मंदिर था वह, उसी में महात्मा ठहरते, उन्हीं का भोजन करते-महात्मा बोलना शुरू कर देते तब वह आते, कभी पंद्रह मिनट बाद, कभी बीस मिनट बाद, महात्मा तत्क्षण रुक जाते, कहते, आइए, सेठ जी आइए। ____ मैं एक दफे उनके मंदिर में सुनने गया था, ब्रह्मचर्चा चल रही थी, और एकदम सेठ जी बीच में आ गए, तो महात्मा जी ने कहा, आइए सेठ जी, आइए, बैठिए! मैं खड़ा हुआ, मैंने कहा कि मैं कुछ समझा नहीं, मालूम होता है ब्रह्म से भी कोई बड़े आ गए। यह ब्रह्म की चर्चा चल रही थी, यह सेठ जी कौन हैं! और सेठ का यहां बीच में आने का प्रयोजन क्या है ? और तुम्हें यह देखने की जरूरत क्या है कि कौन आदमी बीच में आया? पीछे आए हैं तो बैठेंगे। लेकिन आगे बुलाकर बिठाना, बोलने को रोक देना, यह मेरी समझ में नहीं आता। यह किस तरह की ब्रह्मचर्चा चल रही है!
लेकिन ऐसा ही चलता है। जिनको तुम महात्मा कहते हो, उनका ध्यान भी धन पर ही लगा है। धन है तो मूल्य है, धन नहीं है तो निर्मूल्य हो गया सब।
ये भिक्षु भी दान की ही बात सोच रहे हैं। जो दान देते हैं, वे श्रेष्ठ। जो इन्हें देते हैं, वे श्रेष्ठ। जो नहीं देते, वे अश्रेष्ठ। यह कोई कसौटी नहीं हो सकती। और इस कसौटी से सिर्फ एक ही बात पता चलती है कि इनका मन अभी भी धन में उलझा है।
और कोई अन्य कह रहा था, सुंदर स्त्री-पुरुष देखने हों तो उस-उस राज्य में
जाओ।
सारी शिक्षा यही है कि मनुष्य देह नहीं है। अब देह में सौंदर्य और असौंदर्य की बात सोचना बड़ी साधारणजन की बात है। मनुष्य के भीतर जो है, वह निराकार है, अरूप है, निर्गुण है। उसकी तलाश में आए हैं। लेकिन नजर अभी भी चमड़ी पर लगी है। कौन सुंदर? कौन असुंदर? तो अभी भी सपनों में खोए हैं। अभी भी कुछ अंतर नहीं पड़ा है, अभी भी संसार चल रहा है। ठीक अपनी जगह चल रहा है।
भगवान ने यह सब सुना। स्वभावतः चौंके! उन भिक्षुओं को पास बुलाया और बोले-भिक्षुओ, बाह्यमार्गों की बातें करते झिझकते नहीं?
शर्म नहीं आती? संकोच नहीं होता? लज्जा नहीं लगती? थोड़ा सोचो, क्या तुम कह रहे हो? किसलिए कह रहे हो? क्योंकि जो भी कहा जाता है उसके भीतर कारण है। अकारण कुछ भी नहीं है। तुमने अगर कहा कि सुंदर स्त्री-पुरुष, तो तुम्हारे भीतर अभी भी रूप की वासना है। तुमने अगर कहा, धन देने वाले, दान करने वाले श्रेष्ठ पुरुष, तो तुम्हारे भीतर धन की अभी भी कामना है। और तुमने कहा, छायादार वृक्ष, साफ-सुथरे रास्ते, सरोवरों से भरे हुए मार्ग, तो तुम्हारे भीतर अभी भी सुविधा का आग्रह है। और सुविधा या सौंदर्य या संपत्ति, इनको मूल्य न देने के लिए ही तो
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