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सौंदर्य तो है अंतर्मार्ग में
दिया। एक मंदिर बन रहा था; तो लोगों ने सोचा कि चलो, एक बार और कोशिश कर लें, आखिरी कोशिश है यह, अब दुबारा इसके घर कभी न जाएंगे। कभी उसने किसी को दिया ही न था । फिर भी एक कोशिश कर लेनी जरूरी है । एक और कोशिश सही ! एक आखिरी प्रयत्न !
गए। उन्होंने बड़ी दान की महिमा समझायी । और वह थोड़े-थोड़े प्रभावित भी हुए, प्रसन्न भी हुए, प्रफुल्लित भी हुए, क्योंकि कंजूस उत्सुक दिखायी पड़ रहा था। उसकी आंखों में थोड़ा भाव मालूम हो रहा था। उन्हें लगा कि शायद आज जो कभी नहीं हुआ, हो जाएगा। कंजूस को बहुत प्रभावित देखकर उन्होंने कहा कि अब बोलिए, आप कितना दान देते हैं? आप उत्सुक भी दिखायी पड़ रहे हैं, हम धन्यभागी ! कंजूस ने कहा, दान ! नहीं-नहीं, मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं। तुम्हारी बात से मैं उत्सुक हो गया, प्रभावित हो गया, मैं भी अब दान ही मांगूंगा; ये फिजूल की बातें, दूसरा काम क्यों करना ! जब दान इतनी बड़ी बात है, तो क्या दुकानदारी में पड़े रहना, अब मैं भी दान ही मांगूंगा ।
दान को धर्म का मूल कहा था भिखमंगों के लिए नहीं । यह तो कुछ उलटी बात
। जिनके पास है, वे देने में राजी हों, इसके लिए कहा था । जिनके पास नहीं है, वे छीनने को तत्पर हो जाएं, इसके लिए नहीं कहा था। देने का एक मजा हो - जरूर दान धर्म है, क्योंकि देने में धर्म है; जो हो, देना। लेकिन भिखारियों ने इसको अपना शास्त्र बना लिया ।
इस देश में जो इतने भिखारी पैदा हो गए, उसका कारण यही । उन्होंने कहा कि देना पड़ेगा ही, क्योंकि दान तो धर्म है। नहीं दिया तो पापी हो, नर्क में सड़ोगे । देखते हो न, अगर भिखारी को न दो तो वह गालियां देता जाता है । वह नरक में भेजने का उपाय करता जाता है। और बिलकुल आश्वस्त है कि तुम नरक में पड़ोगे। उसने तुम्हें एक मौका दिया था दान देने का ।
यह तो कुछ उलटी बात हो गयी। धर्म के साथ अक्सर ऐसा हुआ है। कहा कुछ जाता है, हो कुछ जाता है, उलटा हो जाता है। कहा था कि देने वाला दे, यह तो लेने वाला लेने को उत्सुक हो गया । यह बात की उलटी परिणति हो गयी ।
भिक्षु बड़े उत्सुक हैं। जहां दान मिलता है, कहते हैं, वहां श्रेष्ठजन; और जहां दान नहीं मिलता, वहां अश्रेष्ठजन । लेकिन उनकी नजर क्या है ? तुम्हारी नजर में भी धन का ही मूल्य है । जो दे देते हैं, वे श्रेष्ठ; और जो नहीं देते हैं, वे श्रेष्ठ नहीं। तो तुम ऊपर से लगते हो कि धन को छोड़ आए, लेकिन धन को अभी छोड़ा नहीं ।
देखते हैं न, किसी महात्मा का व्याख्यान चल रहा हो और कोई धनपति आ जाए तो व्याख्यान भी बीच में रुक जाता है। वह कहता है, आइए सेठ जी, आइए, बैठिए ! मैं छोटा था तो मेरे गांव में कोई भी महात्मा आए तो मैं सुनने जाता था । यह बात देखकर मैं बड़ा हैरान हुआ कि एक बात में सब महात्मा राजी थे कि गांव के
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