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मन की मृत्यु का नाम मौन 'जो व्रतरहित और मिथ्याभाषी है, वह मुंडित मात्र होने से संन्यस्त नहीं होता। और इच्छालाभ से भरा हुआ पुरुष तो कैसे संन्यासी होगा?'
इच्छालाभ! प्रतिस्पर्धा। विजय की आकांक्षा। महत्वाकांक्षा। एंबिशन। 'जो छोटे-बड़े पापों का सर्वथा शमन करने वाला है...।'
कहा-छोटे-बड़े पापों का। क्योंकि पाप वस्तुतः न छोटे होते, न बड़े। पाप तो बस पाप है। ऐसा थोड़े ही है कि तुमने दो लाख की चोरी की तो बड़ी चोरी की और दो पैसे चुराए तो छोटी चोरी की। चोरी तो चोरी है। दो पैसे की उतनी ही है, जितनी दो लाख की है। क्योंकि चोरी का कोई संबंध तुमने कितना चुराया है, उससे नहीं है, तुमने चुराया बस इससे है।
अब इस भिक्षु हत्थक ने कोई बड़ा पाप नहीं किया था। किसी की हत्या नहीं की, किसी की पत्नी नहीं ले भागा, कहीं जुआ नहीं खेला, कोई शराब नहीं पी ली थी, जरा सा झूठ। और वह भी इस आकांक्षा में कि बुद्ध का वचन विपरीत संप्रदायों के मुकाबले विजयी घोषित हो। कोई बड़ा पाप नहीं किया था। लेकिन छोटा ही सही! मगर छोटा कहीं पाप होता? पाप तो पाप ही है। झूठ तो झूठ ही है। छोटा झूठ, बड़ा झूठ, सब बराबर होते। उनकी मात्राओं में कभी कोई भेद नहीं होता। छोटी चोरी, बड़ी चोरी, सब बराबर होती है। . दूसरा दृश्य
एक ब्राह्मण दार्शनिक भगवान के पास आया और बोला, हे गौतम! आप अपने शिष्यों को भिक्षाटन करने से भिक्षु कहते हैं। मैं भी भिक्षाटन करता हूं, अतः मुझे भी भिक्षु कहिए। वह विवाद करने को उत्सुक था और किसी भी बहाने उलझने को तैयार था। शब्दों पर उसकी पकड़ थी, सो उसने भिक्षु शब्द से ही विवाद को उठाने की सोची। उसे तो बस कोई भी निमित्त चाहिए था।
भगवान ने उससे कहा, ब्राह्मण, भिक्षाटन मात्र से कोई भिक्षु नहीं होता; हां, भिखारी चाहो तो मान ले सकते हो। पर भिखारी और भिक्षु पर्यायवाची नहीं हैं। मैं भिक्षु उसे कहता हूं, जिसने सब संस्कार छोड़ दिए। जिसके पास भीतर कोई संस्कार न बचे, उसे भिक्षु कहता हूं। ___ जिसको जीसस ने पुअर इन स्प्रिट कहा है। ब्लेसेड आर द पुअर इन स्प्रिट, धन्य हैं वे जो भीतर से दरिद्र हैं। ईसाइयत के पास इसकी ठीक व्याख्या नहीं है कि क्या मतलब है जीसस का-भीतर से दरिद्र। बुद्ध के इस वचन में उसकी व्याख्या है। संस्काररहित। जिसने सारी कंडीशनिंग छोड़ दी।
समझो, यह बात बड़ी मूल्य की है। हम संस्कारों से जीते हैं। कोई कहता, मैं हिंदू; कोई कहता, मैं मुसलमान; कोई कहता, मैं ईसाई; यह संस्कार है। कोई पैदा तो नहीं होता हिंदू की भांति, न कोई ईसाई की भांति। तुम हिंदू घर में बड़े हुए, तो