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एस धम्मो सनंतनो
स्वभावतः, जैन-मुनियों को यह बात अखरने लगी और उन्होंने प्रतिक्रिया में यह निंदा शुरू की-हम लोग मुनि हैं, मौन रहते हैं, श्रमण गौतम के शिष्य भोजन के समय महाकथा कहते हैं, बकवासी हैं। चुप रहना चाहिए, मुनि को चुप होना चाहिए, ऐसा कहकर निंदा शुरू की।
भिक्षुओं ने यह बात भगवान से कही। शास्ता ने उन्हें कहा, भिक्षुओ, मौन रहने मात्र से कोई मुनि नहीं होता। क्योंकि भीतर हजार विचार चलते रह सकते हैं। मौन का बोलने न बोलने से कोई वास्ता नहीं है। मौन तो निर्विचार दशा का नाम है।
समझो। चुप रहने का नाम मौन नहीं है। चुप तो आदमी हजार कारणों से रह जाता है। चोर से पूछो, चोरी की है? चुप रह जाता है। इसका अर्थ मौन तो नहीं। किसी से पूछो, ईश्वर है? चुप रह जाता है। इसका अर्थ मौन तो नहीं। कोई किसी कारण चुप रह जाता है, कोई किसी और कारण चुप रह जाता है, लेकिन चुप रहने से मौन का कोई संबंध नहीं है। भीतर तो हजार विचार चलते ही रहते हैं। भीतर विचार न चलें। जब तक मन है, तब तक मौन नहीं। मन की मृत्यु का नाम मौन है। मन मर जाए तो मौन। भीतर विचार न चलें, तरंगें न उठे, तो मौन। .
तो बुद्ध ने कहा, भिक्षुओ, मौन रहने मात्र से कोई मुनि नहीं होता, क्योंकि भीतर हजार विचार चलते रह सकते हैं।
तुमने भी देखा होगा, कभी घड़ीभर को बैठ जाते हो चुप होकर, कहां चुप हो पाते हो? सच तो यह है, और ज्यादा विचारों से भर जाते हो, जितने पहले भी नहीं भरे थे। दुकान पर रहते हो, काम-धाम में लगे रहते हो, इतने विचारों का पता नहीं चलता-वे चलते रहते भीतर, मगर तुम दूसरे काम में उलझे रहते हो, तुम्हें पता नहीं चलता। बैठे कभी घड़ीभर को आंख बंद करके तो विचारों का एकदम उत्पात शुरू होता है, तूफान उठते हैं, अंधड़ उठते हैं। न-मालूम कहां-कहां के विचार! जिनकी कोई संगति नहीं, कोई तुक नहीं तुम्हारे जीवन से; तुम सोच ही नहीं पाते कि यह भी क्या मामला है! यह क्यों चल रहा है ? उठते हैं, बेतुके, असंगत, और एक के पीछे एक, कतार बंध जाती है। और चलते ही चले जाते हैं, उनका कोई अंत नहीं मालूम होता। तुम्हें थका डालते हैं। तो चुप रहना तो मौन नहीं है।
बुद्ध ने कहा, मौन का बोलने न बोलने से कोई वास्ता नहीं है। मौन का वास्ता तो है निर्विचार दशा से। और वह अंतर्दशा बोलने से भी भंग नहीं होती। यह बात बड़ी गहरी है।
और वह अंतर्दशा बोलने से भी भंग नहीं होती।
यह मैं तुम्हें अपने अनुभव से भी कहता हूं। मौन बोलने से भंग होता ही नहीं। मौन इतनी गहरी घटना है कि एक दफा घट जाए, तुम्हारे भीतर सघन हो जाए मौन, फिर तुम बोलते रहो, बोलना ऊपर-ऊपर होता है, भीतर मौन की धारा बहती रहती है। अभी तुम जानते न, ऊपर से चुप हो जाओ, ऊपर चुप्पी होती है, भीतर विचार
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