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जागरण ही ज्ञान
भी नहीं खोता। जलता दीया वैसा ही जलता, उसकी ज्योति कम थोड़े ही हो जाती है। एक जलते दीए से हजार बुझे दीए जला लो, जलता दीया वैसा ही जलता है, उसकी ज्योति तो जरा भी कम नहीं होती। ___बांटने से ज्ञान घंटता नहीं, बांटने से जीवन घटता नहीं, बांटने से प्रेम घटता नहीं। और कला क्या है? कला इतनी ही है कि बुझा दीया अड़चन न डाले, रुकावट न डाले, बुझा दीया यह न कहे कि मैं दूर-दूर रहूंगा। बुझा दीया कहे कि मैं पास आने को तत्पर हूं। और क्या है शिष्यत्व! पास आने की कला, हिम्मत। पास गुरु के बैठ जाना सत्संग है। बैठे-बैठे हो जाता है। __तुम ठीक कहते हो कि 'अंकुरित हुआ है बीज सुनते-सुनते, देखते-देखते, पढ़ते-पढ़ते।' __अकेले पढ़ने से यह न होता। मुझे सुनते हो, मुझे देखते हो, मुझे पीते हो, तो फिर पढ़ने में भी तुम अपना न डालोगे। तुम्हें मेरा स्वाद लग गया। तब तो तुम पढ़ने में भी तुमने जो मुझमें देखा, मुझमें जो पाया, मुझमें जो सुना, मुझमें जो छुआ, वही डालोगे। फिर तुम मेरे शब्दों के साथ अनाचार न कर सकोगे। लेकिन मौलिक बात शब्द नहीं है। मौलिक बात मेरी मौजूदगी है। तुम मेरी किताब ही पढ़कर नहीं नौका बना सकोगे। कोई कभी नहीं बना सका। . लेकिन तुम पूछ सकते हो कि धम्मपद अगर अब नौका नहीं बनती और गीता नौका नहीं बनती और अष्टावक्र के वचन अब नौका नहीं बनते, तो फिर मैं इन पर बोलता क्यों हूं? इनके बोलने का राज भी तुम समझ लो। जब मैं धम्मपद पर बोलता हूं तो धम्मपद पुनः जीवित हो जाता है। तब धम्मपद धम्मपद नहीं रह गया, तब धम्मपद के शब्द मेरे शून्य में लिपट जाते हैं। जब मैं गीता पर बोलता हूं, तो कृष्ण को फिर थोड़ी देर के लिए मेरे साथ जीने का अवसर मिल जाता है। ___ इसलिए सदियों से ऐसा रहा है। अतीत के बुद्धों पर बोला जाता रहा है, ताकि उनकी वाणी पुनः-पुनः जीवित होती रहे, खो न जाए। ___ जब मैं जा चुका होऊंगा, तब मेरे शब्द शास्त्र रह जाएंगे। फिर तुम्हें उनसे कुछ सहारा न मिलेगा। हां, फिर सहारा एक ही तरह मिल सकता है कि कोई और बुद्धपुरुष उन पर बोले। तो फिर जीवित हो जाएंगे। बुद्धत्व के स्पर्श से शब्द जीवित होते हैं। और जीवन में ही कुछ छुटकारा है, मुक्ति है। जीवन में ही कुछ आशा है। __ ऐसा समझो कि फूल वृक्ष पर खिला है, तब एक बात है। इसी फूल को तुमने तोड़ लिया, यह गुलाब का फूल तुमने तोड़ लिया और अपनी गीता में कि बाइबिल में दबाकर रख दिया। फिर वर्षों बाद तुम देखोगे, फूल अब भी है-सूखा हुआ, अब गंध नहीं उठती; अब बढ़ता भी नहीं, घटता भी नहीं; सूखा हुआ फूल, गीता या बाइबिल में दबा हुआ फूल शास्त्र हो गया। वृक्ष पर था तब जीवित था।
अभी जो मैं बोल रहा हूं, मेरे वृक्ष पर लगे फूल हैं। जब मैं जा चुका होऊंगा,
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