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एस धम्मो सनंतनो
मिटता है भीतर के जागरण से, बाहर से आयी हुई सूचनाओं से नहीं। बाहर से सूचनाएं आती हैं, अज्ञान ढंक जाता है, आदमी पंडित हो जाता है, ज्ञानी नहीं हो पाता। ज्ञानी तो होता है भीतर के विस्फोट से, भीतर की ज्वाला के सुलगने से ।
और भीतर की ज्वाला सुलगानी हो तो अज्ञान की अवस्था बिलकुल ठीक है। मेरे पास पंडित आ जाता है तो पहले मुझे उसे अज्ञानी बनाना पड़ता है। पहले उसका ज्ञान छीनना पड़ता है। क्योंकि अज्ञान तो स्वाभाविक है, ज्ञान कृत्रिम है। अज्ञान नैसर्गिक है, निसर्ग से रास्ता निकलता है, कृत्रिम से कोई रास्ता नहीं निकलता। झूठ से कैसे कोई रास्ता निकलेगा !
तो तुम तो अच्छा है कि तुम जानते हो कि तुम अज्ञानी हो । यही मेरी भावना है कि ऐसा तुमने प्रश्न ही न पूछा हो भर, अगर तुम जानते ही हो कि तुम अज्ञानी हो तो बड़ी बात तो हो गयी, आधी बात तो हो गयी । तो मुझे तुमसे पांडित्य न छीनना पड़ेगा, यह आधा काम तो समाप्त हुआ।
बहुत बड़ा संगीतज्ञ हुआ - वेजनर । उसके पास जब कोई संगीत सीखने आता था, तो कभी वह किसी से कुछ फीस मांगता, किसी से दो गुनी फीस मांगता, अजीब था मामला ! और एक दफा दो साथी साथ ही साथ आए संगीत सीखने, उसने एक से तो आधी फीस मांगी और एक से दुगुनी फीस मांगी। और जिससे दुगुनी मांगी, वह थोड़ा हैरान हुआ। उसने कहा, यह भी कोई बात हुई ? मैं दस साल से संगीत का अभ्यास कर रहा हूं, मुझसे दुगुनी फीस ! और यह आदमी बिलकुल सिक्खड़ है, इसने कुछ सीखा ही नहीं, इसने कभी हाथ नहीं लगाया संगीत को, और इससे आधी! मुझसे आधी लेते तो तर्कसंगत होता ।
वेजनर ने कहा कि नहीं भाई, तुम्हें मेरे तर्क का पता नहीं। दस साल तुमने सीखा न! अब मुझे उस सीखने को भी भुलाना पड़ेगा, पहले सफाई करनी पड़ेगी। यह आदमी कम से कम साफ-सुथरा है, कोरा है। इसकी स्लेट पर कुछ लिखा नहीं है। इससे आधी फीस लेता हूं। तुमसे दुगुनी मांगी है, तुम्हारी स्लेट पर बहुत कुछ लिखा है, जब तक मैं वह साफ न कर लूं तब तक नयी बात लिखी न जा सकेगी।
तो मैं तुमसे कहता हूं, तुम धन्यभागी हो कि तुम्हें पता है कि तुम अज्ञानी हो । अब इस अज्ञान को जल्दबाजी में ज्ञान में छिपा मत लेना, ज्ञान में आच्छादित मत कर लेना । यह अज्ञान शुभ है। इस अज्ञान से रास्ता निकलता है । वह रास्ता ध्यान की तरफ मुड़ना चाहिए, ज्ञान की तरफ नहीं । ज्ञान की तरफ मुड़ा, चूक जाओगे; ध्यान की तरफ मुड़ा, एक दिन ज्ञान को उपलब्ध हो जाओगे ।
यह बात विरोधाभासी लगेगी - ज्ञान की तरफ गए तो ज्ञान कभी भी न हो पाएगा, ध्यान की तरफ गए तो ज्ञान होना निश्चित है । और ध्यान और ज्ञान की प्रक्रियाएं अलग-अलग हैं। ध्यान की प्रक्रिया है— बोध, जागरूकता । और ज्ञान की प्रक्रिया है - शास्त्र, सिद्धांत, दर्शन, फिलासफी । दोनों अलग-अलग बातें हैं।
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