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जागरण ही ज्ञान
यह छोटी सी घटना तुम सुनो
एक प्रभात एक नए भिक्षु ने सदगुरु पेंग ची के आश्रम में पहुंचकर एक प्रश्न पूछा था। उस भिक्षु का नाम था, चिंग शुई। उसने जाकर कहा था, यह चिंग शुई बहुत अकेला, बहुत अज्ञानी और बहुत दरिद्र है; इस बूढ़े भिक्षु को कुछ आत्मिक समृद्धि चाहिए, पूज्यश्री दया करें! सदगुरु ने एक क्षण उसे देखा और फिर बड़े जोर से आवाज दी-भंते, चिंग शुई! शुई ने कहा—जी, गुरुदेव! सदगुरु हंसने लगे,
और बोले, शराब के प्याले पर प्याले पीने पर भी पीने वाला कहता है कि मेरे ओंठ अभी गीले नहीं हुए हैं। यह अदभुत बात उन्होंने कही। शराब के प्याले पर प्याले पीने के बाद भी पीने वाला कहता है कि मेरे ओंठ अभी गीले नहीं हुए हैं।
क्या हुआ? सिर्फ पुकारा था नाम-भंते, चिंग शुई! और भिक्षु ने उत्तर दिया था—जी, गुरुदेव! सदगुरु यह कह रहे हैं कि तुझे इतना होश है कि मैंने पूछा और तूने उत्तर दिया, मैंने पुकारा और तूने आवाज का उत्तर दिया, तुझे इतना होश है, तो बस काफी है। इतने ही होश को थोड़ा और गहरे करते जाना है। होश का तू प्याला पीता ही रहा जन्मों-जन्मों तक, तूने ठीक से पहचाना नहीं। __यह अदभुत बात उन्होंने कही। उन्होंने कहा, जो बोला, वही तो है समृद्धि। मैंने पुकारा और तूने सुना, तू बहरा नहीं है, यही तो है समृद्धि। मैंने पुकारा और प्रत्युत्तर आया, तू अचेतन नहीं है, यही तो है समृद्धि। मैंने पुकारा और तत्क्षण-एक क्षण बिना सोचे-तूने अपनी उपस्थिति जतला दी, तेरे भीतर सोच-विचार न हुआ, यही तो है ध्यान। यह घड़ी गहरी होती जाए तो अभी प्याले पर प्याला पीआ है, फिर तू पूरी सरिता, पूरा सागर पी जाएगा। तुम पूछते हो, 'मैं बहुत अज्ञानी हूं, दया करें और मुझे ज्ञान दें।'
अज्ञानी होना अच्छा है, शुभ है। अज्ञानी यानी सरल, अज्ञानी यानी जटिल नहीं, अज्ञानी यानी बच्चे जैसा। अच्छा है। इस अज्ञान को खराब मत कर लेना। मैं अज्ञान के पक्ष में हूं। मैं ज्ञान के बिलकुल पक्ष में नहीं हूं। अज्ञान से मेरा बड़ा लगाव है। अज्ञान तो बड़ी शुभ घटना है, कुछ घेरे नहीं है तुम्हारे मन को। ___ इस घड़ी में ध्यान की तरफ मुड़ो। जीवन सब तरफ से पुकार रहा है, उत्तर दो। ज्यादा संवेदनशील बनो। जब वृक्ष की हरियाली पुकारे, तो गौर से उस हरियाली को
आंखों में उतर जाने दो। जब पक्षी पुकार करें, तो उस पुकार को सुनो और तुम्हारे हृदय को उस पुकार के साथ डोलने दो। जब हवा का झोंका आए, तो उस झोंके को ऐसे ही मत लौट जाने दो, धन्यवाद दो, उसके साथ डोलो। जब आकाश की तरफ
आंखें उठाओ, तो इस विराट आकाश के प्रति अनुग्रह का भाव रखो। चांद-तारे जब तुम्हें पुकारें तो सुनो। चारों तरफ से पुकार रहा है सदगुरु-भंते, चिंग शुई! चारों तरफ से पुकार आ रही है। परमात्मा सब तरफ से पुकार रहा है। तुम जरा थोड़े कम बहरे, कम अंधे, बस इतना काफी हो जाएगा।
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