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जागरण ही ज्ञान
तथागत ने आंखें खोली और देखा उस युवक को। वह और भी निकट आ गया। उन आंखों में जादू था। उसने कहा, आश्चर्य! मैं तो निकला था मृत्यु की तलाश में और जीवन के दर्शन होंगे, यह मैंने सोचा न था! मेरा जीवन अत्यंत दुख से भरा है। जीवन बड़ी पीड़ा है। ____ तथागत ने कहा, सच है, जीवन पीड़ा है; लेकिन एक और जीवन भी है, जहां पीड़ा की कोई गति नहीं है। यहां देखो, मेरी तरफ देखो, मेरे भीतर देखो, यहां दुख है ही नहीं। और तुम भी चाहो कि दुख मिट जाए, तो जरा और मेरे पास आ जाओ। शरीर से ही नहीं, मन से मेरे पास आ जाओ। मैं तुम्हें जगा दूंगा। मैं जागा हूं, तुम भी जाग जाओगे। और जो जाग गया वह दुख के बाहर हो जाता है।
एक जीवन है जागरण का, उस जीवन का नाम है बुद्धत्व। वहां कोई दुख नहीं। सब दुख मूर्छा में हैं। ये जो दुख-स्वप्न हम देख रहे हैं न मालूम कितने-कितने प्रकार के, ये सब नींद में देखे जा रहे हैं।
बुद्धत्व का अर्थ है, तुम्हारे भीतर जो छिपा पड़ा है ज्योतिपुंज, उसके आसपास का धुआं हट जाए। तुम्हारे भीतर जो निरभ्र आकाश छिपा है, उसके आसपास बदलियां घिर गयी हैं जन्मों-जन्मों में, वे बदलियां छंट जाएं।
कठिन नहीं है, असंभव नहीं है। हो सकता है। एक को हुआ तो सभी को हो सकता है। इसलिए बुद्धत्व को तुम कोई असंभव लक्ष्य मत समझ लेना। यह तुम्हारे हाथ के भीतर है, यह तुम्हारी पहुंच के भीतर है। अब तुम हाथ ही न उठाओ तो बात
और। यह यात्रा हो सकती है। जितने श्रम से तुम संसार की यात्रा कर रहे हो, उससे तो बहुत कम श्रम से यह यात्रा हो सकती है। जितनी ताकत तुम धन को पाने में लगाते हो, काश उतनी ताकत ध्यान को पाने में लगा दो तो ध्यान अभी हुआ। और धन तो कभी भी न होगा। और हो भी जाएगा तो भी कुछ न होगा। हुआ तो बराबर, न हुआ तो बराबर। धन कितना ही हो जाए, तुम निर्धन रहोगे ही।
बुद्धत्व का अर्थ है, घनीभूत ध्यान, सघनीभूत ध्यान। ध्यान पर ध्यान, पर्त पर पर्त ध्यान की। और खयाल रखना, बुद्ध तुम्हारे जैसे ही मनुष्य थे। जिनको भी हुआ है, तुम्हारे जैसे मनुष्य थे। जरा याद तो करो, जरा अपने को इस स्मृति से तो भरो, स्मरण करो, बुद्ध तुम्हारे जैसे मनुष्य थे। तुम्हारे जैसे हड्डी-मांस-मज्जा से बने। उनके भीतर यह ज्योति जली, तो तुम्हारे भीतर भी यह ज्योति छिपी है। एक दिन उनके भीतर भी न जली थी तो वह भी ऐसे ही परेशान थे। जिस दिन जल गयी, उस दिन जाना-दूर नहीं थी, पास ही थी, सिर्फ ठीक से तलाश करने की बात थी। हमने ठीक से अभी प्रश्न भी नहीं पूछे कि हम कैसे इसकी तलाश करें। हम खोज ही नहीं रहे। एक चीज तो हम खोज ही नहीं रहे स्वयं को हम खोज ही नहीं रहे।
सूफी फकीर हुआ, बायजीद। एक रात अपने झोपड़े में बैठा है और किसी ने आधी रात दरवाजे पर दस्तक दी। वह अपने ध्यान में लीन था, उसने आंखें खोलीं,
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