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मन की मृत्यु का नाम मौन
है, अब रुक जाओ, अब कितनी सुंदर जगह आ गए! ____ मगर बुद्ध कहते हैं, जब तक मन में आना-जाना बना रहे, कोई भी भाव उठता हो, तब तक रुकना मत। निर्भाव जब तक न हो जाओ, जब तक शून्य बिलकुल महाशून्य न हो जाए, कुछ भी न उठे, कोई तरंग नहीं, तभी, तब रुक जाना। तब तो रुकना ही होगा। तब तो तुम न भी रुकना चाहो तो भी रुक जाओगे। तरंग ही नहीं उठती तो अब जाओगे कहां! जब तक जरा सी भी तरंग उठे, समझना कि अभी यात्रा पूरी नहीं हुई है।
ऐसे बुद्ध छोटे-छोटे जीवन-प्रसंगों को उठाकर बड़े परम सत्यों की उदघोषणा करते हैं। धर्म शाश्वत है, सनातन है, लेकिन उसकी अभिव्यक्ति तो क्षण-क्षण जीवन की परिस्थितियों में होनी चाहिए। इसीलिए मैं इन दृश्यों को तुम्हारे सामने उपस्थित कर रहा हूं। ये तुम्हारे जीवन के ही दृश्य हैं। और इनको ठीक से समझोगे तो इन संकेतों में तुम्हारे लिए बहुत पाथेय मिल सकता है।
आज इतना ही।