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एस धम्मो सनंतनो
हत्थक सकुचाए। लेकिन झूठ बोलने में अति कुशल होते हुए भी भगवान के समक्ष झूठ न बोल सके।
सदगुरु का यह बहुत से उपयोगों में एक उपयोग है कि तुम उसके सामने झूठ न बोल सकोगे। सदगुरु का बहुत उपयोग है साधक के जीवन में, उनमें एक महत्वपूर्ण उपयोग यह भी है। तुम और सब जगह तो झूठ बोल सकोगे, और जगह झूठ बोलने में अड़चन न आएगी, याद ही न पड़ेगा कि तुम झूठ बोल रहे हो; जहां जिस बात से सुगमता मिलेगी, वही चला लोगे। लेकिन कहीं एक जगह ऐसी होनी चाहिए, जहां तुम झूठ न बोल सको, वहीं तुम्हें अपने से साक्षात करने का मौका मिलेगा। कोई तो चरण ऐसे होने चाहिए जहां जाकर तुम्हें सच होना पड़े। जहां तुम चाहो भी तो भी झूठ न हो पाओ। कोई तो आंखें ऐसी होनी चाहिए जिनमें तुम झांको और अपनी सचाई को झलकता हुआ पाओ।
सदगुरु दर्पण है। उसके सामने जब शिष्य खड़ा होता है, तो झूठ नहीं बोल पाता। जिसके सामने तुम झूठ न बोल पाओ वही तुम्हारा गुरु है, यह गुरु की परिभाषा समझो। अगर तुम उसके सामने झूठ बोल पाओ, तो वह तुम्हारा गुरु नहीं है।
इसे खयाल में लेना, यह तुम्हारे काम की बात है। अगर तुम जिसके सामने झूठ बोलने में सफल हो अभी, तो समझना कि तुमने उसे गुरु-भाव से स्वीकार नहीं किया। तुमने उसे गुरु नहीं माना। गुरु का अर्थ ही यह होता है, जिससे अब तुम कुछ भी न छिपाओगे, जैसा है वैसा प्रगट कर दोगे। जिसके सामने तुम नग्न होने में समर्थ होओगे, तुम सारे वस्त्र छोड़ निर्वस्त्र हो सकोगे। तुम कह सकोगे कि मैं ऐसा हूं, बुरा-भला जैसा हूं। यह एक जगह तो ऐसी है जहां मैं छिपावट न करूंगा। जहां मैं मुखौटे न लगाऊंगा, जहां मैं और चेहरे न बनाऊंगा, जहां मैं जैसा हं, वैसा ही।
हत्थक सकुचाए। लेकिन झूठ बोलने में अति कुशल होते हुए भी भगवान के समक्ष झूठ न बोल सके। बोले-हां, भंते! भगवान ने कहा, विजय मूल्यवान नहीं है, हत्थक! फिर सत्य को छोड़कर जो विजय मिले, वह तो हार से भी बदतर है। सत्य ही एकमात्र मूल्य है। और जहां सत्य है, वहीं असली विजय है। सत्य के साथ हार जाना भी विजय और सौभाग्य है; और झूठ के साथ जीत जाना भी दुर्भाग्य है। भिक्षु, ऐसा करके तू श्रमण नहीं होगा। क्योंकि जिसने सभी महत्वाकांक्षाओं को शमित कर दिया है, उसे ही मैं श्रमण कहता हूं। __यह श्रमण की अनूठी परिभाषा की उन्होंने—कि जिसने समस्त महत्वाकांक्षाओं को शमित कर दिया है, उसे ही मैं श्रमण कहता हूं। __ समझना। मैंने कहा, सदगुरु वही जिसके सामने तुम्हें सच होना ही पड़े। जिसके सामने तुम्हारे जीवनभर के पाखंड और जीवनभर के झूठ और जीवनभर की कुशलताएं, कम से कम एक पल के लिए सही, तुमसे गिर जाएं। एक पल के लिए सही, बिजली की तरह जो तुम्हारे जीवन में कौंध जाए और जो तुम्हें दिखा दे तुम
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