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एस धम्मो सनंतनो यह बड़ी अनूठी बात है। बुद्ध कहते हैं, यह मानना कि मैं हं, अविद्या के कारण है। सर्व है, मैं कहां? सागर है, लहर कहां? अलग-अलग हम हैं ही नहीं, बस एक ही है। अलग-अलग होने का जो दावा है—मेरी सीमा, मेरी परिभाषा, मैं यह, मैं वह-यह दावा अविद्या है।
जिनके ये चारों आस्रव गिर गए हैं, उनके लिए पारिभाषिक शब्द है, क्षीणास्रव। __ तो यह एकुदान नाम का बूढ़ा भिक्षु क्षीणास्रव था। इसके सब आस्रव गिर गए थे। यह परमदशा है। अर्हत की दशा है। ____अर्हत शब्द भी महत्वपूर्ण है। उसका अर्थ होता है, जिसके सब शत्रु गिर गए। अरि का अर्थ होता है शत्रु, और जिसके सब शत्रु हत हो गए, अब बचे नहीं। यही चार शत्रु हैं। ये शत्रु गिर गए तो आदमी अर्हत हो गया।
जैनों में इसी के लिए शब्द है, अरिहंत। अर्हत के लिए ही पर्यायवाची है।
ऐसे यह बूढ़े भिक्षु थे, यह जंगल में अकेले रहते। अब दूसरे की कोई आकांक्षा भी न थी। कोई आ जाता कभी, रुक जाता, ठीक। कोई न आता, ठीक। न यह कहीं जाते, न आते। लेकिन नियम से रोज उपदेश देते थे। अकेले होते तो भी। कोई न होता तो भी। ___ यह भी बड़ी महत्व की बात है। ऐसे ही समझो कि एकांत में फूल खिला तो सुगंध तो बहेगी ही न, चाहे कोई सुगंध लेने वाला हो या न हो, चाहे कोई राहगीर पास से गुजरे कि न गुजरे। कि अंधेरे में दीया जला, रोशनी तो फैलेगी ही न, कोई हो आंख वाला या न हो आंख वाला। मंदिर खाली ही क्यों न हो, लेकिन दीया जलेगा तो रोशनी तो फैलेगी ही न। इसलिए उपदेश फैलता था। यह उपदेश सुगंध जैसा था। यह किसी के लिए दिया गया, ऐसा नहीं। यह हो रहा था। जैसे झरने बहते हैं, फूल खिलते हैं, दीया जलता है, चांद-तारे चलते हैं, ऐसी यह सहज घटना थी। __इसका मतलब तुम यह मत समझना कि इसमें कोई मजबूरी थी, कि देना पड़ता था। नहीं, एकुदान अपने को पाते होंगे कि उनसे कुछ बहा जा रहा है। जो मिला है, वह बहता है। जो जाना है, वह बंटता है।
महावीर को जब पहली दफा ज्ञान हुआ, तो उनसे ज्ञान झरा। बड़ी प्यारी कथा है। आदमी वहां कोई भी न था, देवता ही थे, तो देवताओं ने सुना। उन्होंने बड़ा निनाद किया, उदघोष किया धन्यवाद का। बस बात खतम हो गयी। __ देवताओं के साथ एक खराबी है। वे केवल धन्यवाद कर सकते हैं, कुछ कर नहीं सकते। देवता एक अर्थ में नपुंसक हैं। इसलिए सारे भारत के मनीषियों ने कहा है, मुक्ति का द्वार मनुष्य से जाता है, देवताओं से नहीं। देवताओं को भी फिर मनुष्य होना पड़ता है, तभी मुक्त हो सकते हैं। देवता कुछ कर नहीं सकते, बातचीत कर सकते हैं। करने के लिए तो देह चाहिए, उनके पास देह नहीं है।
तुम ऐसा ही समझो कि तुम्हारा मन ही तैर रहा है आकाश में, बस वही देवता
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