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धर्म तुम हो
ऋषि को देखकर बुद्ध के पिता तो उसके चरणों में झुक गए। उन्होंने कहा, आपका कैसा आगमन हुआ? वह बड़ा ख्यातिनाम था। उन्होंने कहा, मैं समाधि में बैठा था
और मैंने देखा कि तुम्हारे घर एक बच्चा उत्पन्न हुआ है जो भविष्य में बुद्ध होगा, मैं उसके दर्शन करने आया हूं। .
पिता तो चौंके। पिता ने कहा, अभी वह चार दिन का बच्चा है, आप उसका दर्शन करने आए। लेकिन आए तो ठीक। बेटे को लाकर उनकी गोद में रख दिया। वह चार दिन का बच्चा है, अभी आंख भी मुश्किल से खुली है। वह वृद्ध तपस्वी छोटे से बच्चे के चरणों में सिर रखकर लेट गया साष्टांग और उसकी आंखों से आंसू की धारा बहने लगी। बुद्ध के पिता थोड़े चिंतित हुए। उन्होंने कहा कि यह बात क्या है? एक तो यह शोभन नहीं कि आप एक चार दिन के बच्चे के चरणों में झुकें। आप जगत-प्रसिद्ध, लाखों आपके भक्त, आप यह क्या कर रहे हैं! आपका मन तो कुछ गड़बड़ नहीं हो गया? आप यह कैसा पागलों जैसा कृत्य कर रहे हैं! और फिर आप रो क्यों रहे हैं? - तो उस वृद्ध तपस्वी ने कहा कि मैं रो रहा हूं इसलिए कि मेरे तो दिन समाप्त हुए। यह तुम्हारा बेटा जब बुद्ध होगा, तब मैं इस पृथ्वी पर नहीं होऊंगा। नहीं तो इसके चरणों में बैठता, इसकी वाणी सुनता, इसकी तरंगों में डोलता। वे धन्यभागी हैं जो, जब यह बुद्धत्व को उपलब्ध होगा, तब यहां पृथ्वी पर होंगे। मैं अभागा हूं, मैं तो चला, मेरे तो जाने के दिन करीब आ गए। इसलिए मैं भागा आया हूं कि चलो कुछ हर्ज नहीं, वृक्ष तो नहीं देखेंगे तो बीज को ही नमस्कार कर आएं, बीज में भी फूल तो छिपा ही है।
उम्र से कोई संबंध नहीं है। बुद्ध ने यह जो कहा, भिक्षुओ, वृद्ध होने और स्थविर के आसन पर बैठने मात्र से कोई स्थविर नहीं होता।
यह कोई पदवी नहीं है कि बूढ़े हो गए तो स्थविर हो गए। यह तो बोध की एक दशा है कि प्रौढ़ हो गए, कि तुमने जीवन को जागकर जीना शुरू कर दिया, कि तुम्हारे भीतर समाधि का फल लग गया, कि तुम्हारी प्रज्ञा ठहर गयी-अब तुम्हारे भीतर चंचल लहरें नहीं उठतीं, अब तुम्हारा दर्पण निर्मल है।
जिसने आर्य-सत्यों का ज्ञान प्राप्त कर लिया है।
चार आर्य-सत्य हैं, बुद्ध ने कहे। एक, कि जीवन दुख है। दूसरा, कि जीवन के दुख से पार होने का उपाय है। तीसरा, कि पार होने की दशा है, पार होने की व्यवस्था है। और चौथा, दुख के पार निर्वाण है। ये चार आर्य-सत्य हैं। दुख है, दुख को मिटाने का मार्ग है, दुख को मिटाने के साधन हैं, दुख के मिटने के बाद एक चित्त की दशा है, चैतन्य की दशा है। जिसने इन चार आर्य-सत्यों को अनुभव कर लिया है, वही स्थविर है।
जो अहिंसक हो गया है।
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