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पहला प्रश्न :
क्षण है द्वार प्रभु का
संन्यास लेना चाहता हूं; कब लूं ?
कब पूछा तो कभी न ले सकोगे। कब में कभी नहीं छिपा है। कब का अर्थ ही है, टालना चाहते हो; स्थगित करना चाहते हो । कल है नहीं, आज ही है। जो भी करना हो, अभी कर लो। अगर टालने की ही बहुत आदत हो तो बुरे को टालना, भले को मत टालना । क्रोध करना हो तो पूछना, कब ? प्रेम करना हो तो मत पूछना। लोभ करना हो तो पूछना, कब ? दान करना हो तो मत पूछना। शुभ को तत्क्षण कर लेना ।
शुभ के संबंध में इतना ध्यान रखना, क्षणभर भी बीत गया तो शायद तुम चैतन्य की उस ऊंचाई पर न रह जाओ, जहां शुभ घटित हो सकता था। तुम सदा ही तो उस अवस्था में नहीं होते जहां प्रेम कर सको। कभी-कभी होते हो। कभी-कभी खिड़की खुलती है। फिर भटक जाते हो। कभी-कभी तारा दिखायी पड़ता है, फिर अंधेरा हो जाता है। तो जब तारा दिखायी पड़े, तभी कर लेना ।
इसे खयाल रखो, यह सूत्र जीवन में क्रांतिकारी हो सकता है— बुरे को टालना, कहना, कल कर लेंगे, जल्दी क्या है; भले को अभी कर लेना, कल पर मत टालना;
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